पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कविता जिसका
शीर्षक है “होता है आज विदीर्ण हृदय ”:
होता है आज
विदीर्ण हृदय
जब रामराज्य था
कभी यहाँ,घी दूध की नदियाँ बहती थीं ।
भगवान कृष्ण के
राज्य में लक्ष्मी चारों पद से रहती थी।
जब हुआ विदेशी
राज्य, हमारा हुआ ह्रास,हा! हुआ क्षय
होता है आज
विदीर्ण हृदय
शाहजहाँ के राज्य
में, अंग्रेज यहाँ पर आया था।
रोशनआरा को ठीक
किया था, मनमाना वर पाया था।
सम्राट मुगल क्या
किया हाय? उपहार में दिया विशाल राज्य।
होता है आज विदीर्ण हृदय
व्यापार किया
पहले , कालान्तर में शासन जमा लिया।
कुत्ते से भी
बदतर समझा, नारी का भी अपमान किया।
तुम खड़े- खड़े
देखते रहे, भारत का होता हुआ क्रय।
होता है आज
विदीर्ण हृदय
जब अंग्रेजी
सत्ता आई,श्रीखंड भरत श्री हीन हुआ।
हम तो भूखे नंगे
फिरते,निज देश को मालामाल किया।
नवजात शिशु भूखों
मरता, दो बूँद नहीं मिल रहा पय।
होता है आज विदीर्ण हृदय
कई लोगों के
बलिदानों से, देश यह आजाद हुआ।
कहने को तो आजाद
हुआ,पर मन से गुलामी गई नहीं।
परिवेश, खानपान, संस्कृति, भाषा तक अपनी रही नहीं।
सत्ता की अंधी
गलियों ने, इस देश का गौरव छीन लिया।
इस देश का वैभव
छीन लिया, इस देश का सब कुछ लुटा दिया।
सोने की चिड़िया
मेरा देश कब होगा, यह पूछता हृदय।
होता है आज
विदीर्ण हृदय
(मेरी जर्जर हो
चुकी डायरी से, लगभग चौरह वर्ष की उम्र
में यानि 58 वर्ष पहले लिखी थी।)