पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने
प्रस्तुत है रचनाकार कंचन ज्वाला "कुंदन" की एक छत्तीसगढ़ी कविता जिसका शीर्षक है “परेम के पचरा म
झन परबे ग...”:
परेम के पचरा म झन परबे ग...
दू डोंगा के सवारी के भइया झन करबे ग...
अपन बारी-बिरता अपन दुवारी संग
लकरी कस कट जा भले चाहे आरी संग
टुरी सुघ्घर परोसी बर झन मरबे ग....
मुड़ी नवाके घूंट-घूंट के रोबे
जांता म दराके जिनगी ल खोबे
जरे सीते आगी ल झन धरबे ग...
कहना ल मान मैं करंव गोहार
फोकटे-फोकट म मत हो खोहार
जड़कल्ला के भूर्री कस झन बरबे ग....
दारू घलो ल हाथ झन लगाबे
इज्जत के धनिया बोके झन आबे
घोलहा नरियर कस भइया तैं झन सरबे ग.....