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कविता: रिश्तों के बाज़ार में रिश्तों का कारोबार (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रिश्तों के बाज़ार में रिश्तों का कारोबार”:

अजीब रिश्ते हैं

पैदा होते है तो सब खुश होते है

मरते है तो सब रोने लगते है

जैसे जैसे हम बड़े होते है ये रिश्ते हमें भी ठगने लगते है

कोई मां बाप बनता है कोई रिश्तेदार बनता है

कोई पति जो बनता है तो कोई औलाद बनता है

कारवां मेरा अभी यहीं रोके नहीं रुकता

की जब तक कब्र में ना जाऊं कोई पीछा ना छोड़ता

कोई हक के लिए लड़ता कोई जायदाद के खातिर

किसी को धन कमाना है कोई सम्मान के खातिर

यहां जिस मोड़ पर देखो सभी ठगहार बैठे है

करने लिलाम रिश्तों को लगा बाज़ार बैठे है

कहें किसको यहां अपना यहां सब भूल बैठे हैं

यहां रिश्ते ही रिश्तों के लिए लेे तलवार बैठे है