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ग़ज़ल (सलिल सरोज, नई दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की ग़ज़ल:

औरत को  तमाशा बनाए रखिए
और फिर जुबाँ को दबाए रखिए
 
राम को पूजा कीजिए हर घर में
और सीताओं को सताए रखिए
 
जो अधिकार की बातें करने लगें
तो तमाम उलझने गिनाए रखिए
 
खूँ कीजिए इनका जब दिल चाहे
और टीका सिर पर लगाए रखिए
 
न कोई दलील न ही कोई मुक़दमा
हर बाज़ी इस  तरह बिछाए रखिए
 
औरत ही औरत के लिए ना  बोलें
इसी  तरह  इनको सिखाए रखिए
 
बराबर में आने की जुर्रत हुई कैसे
इन्हें लूट कर मर्यादा बचाए रखिए