पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहनलाल सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मन के तरंग”:
मन की तरंग मार लो हो गया भजन ।
कोई तुम्हें बुरा कहे सुन कर करो क्षमा ।।
तु इतने उदार बन हो गया भजन ।
मन की तरंग मार लो हो गया भजन ।।
कोई नफरत हमसे करे हम दे देंगे प्यार ।
आग का बस इलाज है पानी करो बौछार ।।
मन की तरंग मार लो हो गया भजन ।
मन के तरंग हैं ज्वार सा होते बहु रंग ।।
थोड़ी ठहर कर बात कर बुझ जाऐ तरंग
मन की तरंग मार लो हो गया भजन ।।
संगत संस्कृति साथ ले चले हरदम ।
जज्बा चितपावन बने हो गया भजन ।।
संस्कार संस्कृति बने माँ दे सर पर हाथ ।
सुबह-शाम प्रणाम कर माता-पिता चरण नवाय ।।
झुकने होते नहीं जो कहलाते छोट ।।
जो झुकते नहीं वो न मनुज कहाय ।
आओ दिल पर हाथ रख चलेंगे
बुढे बड़े के संग ।।
वही प्रभु के साथ है जिसके उठे तरंग ।
मन की तरंग मार लो हो गया भजन ।।