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कविता: मां (प्रियंका पांडेय त्रिपाठी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रियंका पांडेय त्रिपाठी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मां:

मां की याद बहुत आती है
अन्तरमन मे कोलाहल है
आंखों से नीर बहे है
मन भी अति घायल हैं
मां की याद बहुत आती है।।
कैसे करू मै व्याख्या मां की!
 
मां के चरणों मे पूरा ब्रह्मांड समाया है
मां की रचना करके ईश्वर को भी चैन आया है
मां जगत जननी जगमगाता है
मां लक्ष्मी दुर्गा अनुसुइया है
फिर! मां क्यों आज तिरस्कृत है
ईश्वर का ही एक नाम है मां।।
कैसे शब्दों की माला बनाऊ मां की!
 
मां के आंखों से बहती स्नेह की धारा है
मां के आंचल मे प्रकृति की छांव है
दर्द हरती है...दर्द सहती है
मां तो सांसों मे बसती है
हम मां की नस नस मे बसते है
प्यार का पक्का सबूत है मां।।
कैसे कोई जगह ले सकता है मां की!