पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार आदिवासी सुरेश मीणा का एक गीत:
"तेरी गहरी सवालों में
जख्मी दिल के छालों में
क्यों दर्द इतना समाए हो
तेरी गहरी.....
था दर्द का काफिला
रातों में तन्हाइयां थी
आंसू भरा दिन था
एक बेवसी है ख्यालों में
जख्मी दिल के छालों में
क्यों दर्द इतना समाए हो
हो साथ सबके खड़े
कहने को अपने तो सब है
फिर भी हो तन्हां खड़े
उलझे हो रिश्तों के जालों में
जख्मी दिल के छालों में
क्यों दर्द इतना समाए हो
हमदर्द हमको बना लो
मैं एक फूल हूं तेरा
जुड़े में मुझको सजालो
आ जाओ तुम मेरी बाहों में
खुशियां बिछा दूँ मैं राहों में
क्यों दर्द इतना समाए हो
तेरी गहरी सवालों में
जख्मी दिल के छालों में
क्यों दर्द इतना समाए हो"


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