पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुधीर श्रीवास्तव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “लाँछन”:
औंधे मुँह
पीछे की ओर बंधे हाथ
बेजान शरीर
और लोगों की खुशियाँ मनाती भीड़
देखकर मैं भौचक्का रह गया।
मैं समझ नहीं पाया कि
जाने अनजाने उन्मादी भीड़ ने
ये कैसा गुनाह कर डाला,
एक निर्बल,असहाय,अकेली महिला को
बिना किसी आरोप ,सबूत के
डायन होने की अफवाह फैलाकर
पीट पीटकर मार डाला।
और अब खुशियाँ मना रहे हैं ऐसे जैसे
कितना बड़ा काम कर डाला,
मर्दानगी का सबूत दे डाला,
एक जीती जागती महिला को
लाँछन लगाकर
मौत दे डाला।
पीछे की ओर बंधे हाथ
बेजान शरीर
और लोगों की खुशियाँ मनाती भीड़
देखकर मैं भौचक्का रह गया।
मैं समझ नहीं पाया कि
जाने अनजाने उन्मादी भीड़ ने
ये कैसा गुनाह कर डाला,
एक निर्बल,असहाय,अकेली महिला को
बिना किसी आरोप ,सबूत के
डायन होने की अफवाह फैलाकर
पीट पीटकर मार डाला।
और अब खुशियाँ मना रहे हैं ऐसे जैसे
कितना बड़ा काम कर डाला,
मर्दानगी का सबूत दे डाला,
एक जीती जागती महिला को
लाँछन लगाकर
मौत दे डाला।


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