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कविता: बेटियां (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेटियां”:

घर की हर खुशहाली की राज होती है बेटियां
नन्ही चिडियों के जैसे चहकती है दिन रात बेटियां
सबके चेहरे पे मुस्कान बिखेरने वाली होती है बेटियां
छोटे छोटे कदमों से पूरे घर में रौनक फैलाती है बेटियां
जिस भी घर में जाती है उस घर को गुलज़ार करती है
अपनी हर खुशियां अपनों पे न्योछावर करती है बेटियां
बहुत ही बदनसीब होते है इस जहां में वो सारे मां बाप
जिनके घर में कभी बेटियों कि गूंजती नहीं है आवाज़
चाहे कोई कुछ भी कहे कोई कुछ भी बोले बेटियों को
लेकिन फिर भी सिर को झुका सबकुछ सुनती है बेटियां
बचपन से जवानी का सफर मायके में तय करती है बेटियां
फिर भी किसी के घर की अमानत बन बिदा होती है बेटियां
इक बेटी से इक पत्नी इक पत्नी से इक मां का पड़ाव
खुशी खुशी से इन रिश्तों में अपने फर्ज़ को निभाती है
इक घर को नहीं बल्कि दो घरों को जोड़ती है बेटियां
बिन झिझक के अपने हर फर्ज़ को निभाती है बेटियां

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