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माता रानी "प्रथमरूप चंद्रघंटा काव्य गीत" (मोहनलाल सिंह, देवघर, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहनलाल सिंह का माता रानी "प्रथमरूप चंद्रघंटा काव्य गीत":

दुर्गा दुर्गति दूर कर।
मंगल कर सब काज।।
मन मंदिर माँ तू बसो।
कृपा करो तुम आज।।
 
तू मैंया कुकराहा वाली।
तू हो बड़ी निराली।।
मैंया आ गई है,तू हो परम पुणिता।।
मैंया आगई है,कभी तू सरस्वती। रूप आई, कभी लक्ष्मी रूप आई मैंया आ गई है।।
दुष्ट दानव पड़ोसी को करने।
काली, दुर्गा रूप सजकर आई।।
प्रथम दरस दिया चितपावन।
नग्न रूप में कुकराहा आई।।
एक चितपावन गाय चराते।
दर्शन तुमको पाई मैंया आ गई है।।
झटपट गमछा ढककर मैंया।
तेरी लाज बचाई मैंया आ गई है।।
आज भी पुराना वस्त्र के ऊपर।
नूतन वस्त्र सजाते मैंया आ गई है।।
नौ दिनों तक नौ रूपों में सजकर मैंया आती।।
नौ रूपों में सजकर मैंया।
भक्तों संकट हरती मैंया आ गई है।।
प्रकृति प्रथम रूप में सजकर।
मैंया शैलपुत्री कहलाई।।
पर्वत राज हिमालय पुत्री।
नंदी पर चढ़ कर आई।।
साधकगण मूलाधार में चक्र स्थित करते।
फिर योगी ध्यान को धरते।।
पाकर योगी वरदान मैंया से।
मैंया वरदायनी कहलाती मैंया आ गई है।।
नंदी सवारी मैंया!शक्ति रूप, त्रिशूल दाहिनी हाथ में धरती।।
मैंया आ गई है......।
बायें हाथ कमल सुशोभित जग
आनंदित करती।।
मैंया आ गई है......2 बार।
"ॐ शं शैलपुत्री दैव्ये नमः" से जो
उच्चारण करते।।
क्षण भर में भक्तों के कष्ट हरकर
भक्तों की पीड़ा हरती।।
मैंया आ गई है......2 बार।
लाल लाल चुनरी मैंया,
कुकराहा का दरबार सजती
मैंया आ गई है।।
कुल देवी माँ पूजा-अर्चना कर
मन को हर्षित करती।।
मैंया आ गई है.....।
सुख समृद्धि देकर मैंया नवरुपों सजती।।
मैंया आ गई है.....।
है माँ भारती तू है लक्ष्मी, माँ काली मैंया,
नवरूप दुर्गा सजती।
मैंया आ गई है, मैंया आ गई है।।

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