पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की ग़ज़ल:
खून से लथपथ उसके
जिस्म का हर हिस्सा है
ये अपने ही घर की
बहन-बेटियों का किस्सा है
नोंचा, खसोटा, काटा और फिर चीर - फाड़ डाला
ये किस हद की
बर्बरता है,क्यूँ इतना रंजिश सा है
भाग कर आखिर वो
जाती भी तो कहाँ जाती
इस समूचे समाज का
नज़रिया ही बिष-सा है
खूब शोर होता है
दोंनो सदनों में बेटियों के वास्ते
हक़ीक़त की ज़मीन पे
उतरता क्यूँ नहीं गुस्सा है
रौंद डाला दरिन्दों ने
जिस की पूरी फुलवारी को
उस बागबाँ के
माथे पे वो कली इक बोसा* सा है
किस को क्या फर्क
पड़ता है, किसी के मर जाने से
कल सड़क पे एक
निर्भया थी,आज कोई मनीषा है
*बोसा-चुंबन


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