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कविता: लौटा दे मीत मेरा (रीमा सिंह, अयोध्या नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रीमा सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “लौटा दे मीत मेरा”:
          
तेरे मयखाने में आये जब भी सजन मेरा,
खाली बोतल दिखा देना, होगा रहम तेरा।
 
लौटे तेरे दर से जब जब पी कर वो,
गुजारी हैं कितनी रातें मैंने बस रो रो।
 
मेरे घर फैला अंधेरा रौशन हुआ मधुशाला है,
बैठै जब साथी मेरा कहना खाली आज हाला है।
 
कितने घर हुए बर्बाद साकी तेरे हाथों से हैं,
घर चलता रूपए से, नहीं जज्बातों से है।
 
गलती नहीं तेरी, क्यूँ कसती तुझे मैं ताना,
पीने वाले अगर आयेंगे, तुझे पड़ेगा पिलाना।
 
आशियाना मेरा सूना! भरा तेरा मयखाना है,
तरस खा अबके बरस, खाली हुआ खजाना है।
 
रूखा सूखा ही सही, खुशियाँ ढूंँढे अब और कहाँ ,
ऐ साकी होगी मेहर, लौटा दे मीत मेरा होगा वहाँ।।