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ग़ज़ल: लिख देना तुम (सलिल सरोज, दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज  की एक ग़ज़ल  जिसका शीर्षक है “लिख देना तुम”:


मेरे मोहब्बत  करने का ये अंजाम लिख देना तुम
अपनी तमाम मुश्किलात मेरे नाम लिख देना तुम
 
बहुत ज़ुल्म किया है तुम पे समाज और रिवाज़ ने
तुम्हारे अश्कों को पीना मेरा काम लिख देना तुम
 
तुम्हें नसीब हों नई सुबह की नई - नवेली  किरणें  
मुझे अपनी बेझिल साँसों की शाम लिख देना तुम
 
नहीं वश में हो तुम्हारे जब लफ़्ज़ों की ख़ातिरदारी  
बहते हवा को चूम कर मुझे पैगाम लिख देना तुम
 
बिन कुछ कहे भी मैं समझ लूँगा तुम्हारे अलफ़ाज़
मुझे तुम्हारा धर्म , तुम्हारा आवाम  लिख देना  तुम
 
इतनी तरकीबों से भी अगर तुम्हें खुश न रख पाऊँ
तो मुझे कोशिशे - इश्क़ में नाकाम लिख देना तुम

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