पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल' की एक कविता जिसका शीर्षक है "राखी का त्योहार":
बहन भाई के निर्मल मन में,सदा जगाये प्यार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
भाई की जीवन फुल-बगिया,खिल कर सुरभि लुटाये।
भइया की झोली खुशियों से,हे ईश्वर भर जाये।
तिलक भाल पर लगा,आरती,करती बारम्बार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
राखी का यह पावन धागा,मस्तक पर शुभ रोरी।
कभी न टूटे भाई- बहन के,प्रेम की निर्मल डोरी।
भाई रक्षा हित तत्पर है,बहन लुटाती प्यार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
भाई कहता बहन कभी भी,दुखी नहीं तुम होना।
तेरे आगे सभी तुच्छ हैं,यह चाँदी औ' सोना।
इन धागों का मोल नहीं है,यह अनुपम उपहार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्याहार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
भाई की जीवन फुल-बगिया,खिल कर सुरभि लुटाये।
भइया की झोली खुशियों से,हे ईश्वर भर जाये।
तिलक भाल पर लगा,आरती,करती बारम्बार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
राखी का यह पावन धागा,मस्तक पर शुभ रोरी।
कभी न टूटे भाई- बहन के,प्रेम की निर्मल डोरी।
भाई रक्षा हित तत्पर है,बहन लुटाती प्यार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्योहार।
भाई कहता बहन कभी भी,दुखी नहीं तुम होना।
तेरे आगे सभी तुच्छ हैं,यह चाँदी औ' सोना।
इन धागों का मोल नहीं है,यह अनुपम उपहार।
राखी का त्योहार सुहाना,राखी का त्याहार।


0 Comments