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रक्तबीज_३ || सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र", जालापाडा बस्ती, बानरहाट, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:

|| रक्तबीज_ ||

आधे लाशो का ढेर बिछता है हर ओर
हुबहु एक इन्सान जैसी सक्ल दिखता है
हर गली हर मुहल्ले मे वह फेरि मारता है
नल खोलने पर रक्त का बिज बहता जाता है।
 
 
पसिने ते तर-बतर रोटी का ख्वाब लिये
पत्थर को पिसता है कडी धुप मे हर बार
बारिश कि लपटो मे ईटो को ढोता जाता है
वो शक्स रक्तबीज के लिये खुन पिरोता है।
 
 
मेरी मुलाकात एक कर्मवीर बदहाल से हुई,
बचपन से काम करते हुये उम्र पचपन हुई
सुई से लेकर जहाज सब उसकी ही बनाई
मगर फटे कपडे मे दिखता है बदहाल वही।
 
आदमी कि सकल मे कोई है रक्त का बीज
वो बडा शातिर दिमागी कातिल हुआ है
खुन खुद पिता है इल्जाम औरो पर लगाता है
चुपके से फिर दफतर कि कुर्सी मे बैठ जाता है।
 
 
उसके पास बेहिसाब हथियारो का जमावडा है
मुस्कुराकर वो करिब और करिब आता है
हर ओर उसका हुजुम खडा दिखता जाता है
हर पल एक रक्तबीज उगता ही जाता है ।
 
 
एक मोची है टाका मारता है, जुता बनाता है
हर उम्र कि आदमी कि नजर को जानता है
पसिने और बैमानी कि कमाई को जानता है
वह रक्तबीज को भी अच्छे से पहचानता है।
 
 
रक्तबीज आता है जुता मरम्म्त करवाने को
हाथ मे घडी,हाथ मे फोन चमडे का है जुता
हर आती लडकियो को बार बार है घुरता
लाखो कि बात करता मोची को पान्च देता
 
 
वही आदमी हिन्दी अंग्रेज़ी मे बुदबुता है
वो अपने को लेबर डिपार्टमेन्ट का बताता है
सारे निमय वो बखुबी जानता समझता है
मोची पर अपनी ऐठ झाडता हुआ जाता है।
 
वह मजदुरो के लिये योजना बनाता जाता है
वह हर फेकट्री का कानुन जानता है
मालिको से मिलकर वह सिस्टम बनाता है
आधा खाता है आधा मजदुरो को देता है।
 
रक्तबीज है वह उसकी अपनी जमात खडी है
सुई गाडिया, सडक से लेकर हर बिल्डिन्ग
वो मजदुरो कि पिठ पर मारता ही जाता है
मजदुर का नाम अपने जेब मे रखता जाता है।
 
 
उसने रक्तबीजो का हुजुम पाल रखा है
क्या गुन्डे क्या मवाली वो नेताये पाल रखा है
हर मजुरी पर उसने अपना हिस्सा रखा है
वो कौन है ? हर कोई जान चुका है
 
कैसे रक्तबीज मजदुर को इतना खाता है ?
फिर भी गाव शहर हर गली मे वह रहता है
जिसने भी आवाज उठाई वो गायब होता है
क्या मजदुरो मे युद्ध कि ताकत नही होती है।
 
 
हर आफिस मे एक चोर बैठा हुआ होता है
जो रक्तबीज को मुनाफा पहुँचाता जाता है
वो हर मजदुर के घर युनियन बनकर आता है
चन्दा उठा क्रान्ती को मालिक को देने जाता है ।
 
वो भाई है, चचा है, बेटा है, बेटी है, बाप है
जो मजुरी का पैसा बिना काम के खाता है
रक्तबीज बनकर वो अपनो को ही खाता है
डकार मार कर मौत कि फरमान लाता है ।
 
हर मजदुर का खुन पिने वाला इधर ही है
आदमी का चोला पहना वह रक्तबीज है
देखकर भी, जानकर भी सब मौन ही मौन है
पत्थर कि तरह तोडे उसे कौन वह वीर है?
 
इतने मे ही खबर आता है,रक्तबीज मुझे बुलाता है
उसकी सक्ल बहुत साफ साफ दिखती है
उम्र,सुरत,पेहनावा सब कुछ हमसे मिलती है
वह अपना कपडा खुद ही फाड लेता है ।
 
कपडे फाडने का इल्जाम मुझे लगाता है
वह मेरी आख पर वार करता है,दान्त से काटता है
धिरे धिरे हर कोई मुझे नोचने आता है
फिर एक रक्तबीज चिल्ला कर बताता है ।
 
"हर उस नल से छत से पुल से मकान से
सडक से स्कुल से फेकट्री मे मेरा राज है
पुलिस कहो या नेता या फिर अभिनेता
या तुम्हारे गाव का नेता सबसे मेरा गहरा रिश्ता"
 
अखिर वो इतना बडा और हुआ बलवान्
कैसे होगा मन्थन रक्त का होगा उसका पान
यज्ञ हवन कुन्ड विहार कुन्ज बिहान समर
कहाँ तक फैला है रक्तबीज का फरमान ।

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