पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह
"सहज़" की एक कविता जिसका शीर्षक है “चांद पर भी वह पहुंच गयी”:
बैटी है वो बैटी है ।
जमाने से लड़ी है वो ।
दुनियासे कहाँ डरी है वो ।
यहाँ देखो वहाँ देखो ।
पैरों पे अपने खड़ी है वो ।
जमाने से कहाँ डरी है वो ।
रानी खुब लड़ी मर्दानी थी वो ।
भरत मां की ही बैटी थी वो ।
दुनिया से कहाँ डरी है वो ।
चांद पर भी वह पहुंच गयी ।
तिरंगा ऊंचाई पर लेकर खडी है वो ,
पढ़ाई मे भी वह अव्वल रहती है ।
भाई के साथ भाई बन जाती है ।
भाई की तरह ही खड़ी है वो ।
जब वक्त आजाए कोई एसा तो ।
आगे , केवल आगे बढ़ी है वो ।