पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता जिसका
शीर्षक है “माँ के हाथों की
रोटी”:
माँ के हाथों की रोटी का
स्वाद निराला होता है ।
में उनसे आला होता है ।
औ ममत्व सादी रोटी मे।
रस आता सूखी रोटी में ।
गुड़ से भी भा जाती है ।
ख़ुशबू खींच बुलाती है ।
रोटी में बस सुख मिलता ।
माँ की रोटी पर हलके हैं ।
मुख में जो दे देती है ।
और अमोलक थाती है ।
सब चीज़ों से वज़नी है ।
माँ के साथ ही नित्य बैठकर
मक्का-रोटी, और राबड़ी
अरे, ढोकले हों या साजा,
इन सबमें है निपुणहस्त वह
हे ईश्वर मैं शुक्र मनाता,
माँ का जादू रहे सलामत,
सब चीज़ों पर भारी है ।
मुझको बेहद प्यारी है ।।