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कहानी: प्यार के रंग जुदा जुदा (डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह "सहज", हरदा, मगरधा, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह "सहज" की एक कहानी जिसका शीर्षक है "प्यार के रंग जुदा जुदा":

उस से मेरी मुलाक़ात कोई ज़्यादा पुरानी न थी, और बिल्कुल नई भी नही थी, उससे मेरा पहला परिचय पिछले कुछ महिने पहले ही हुआ था । लेकिन ये ताआरूफ़ सिर्फ़ ताआरूफ़ ही रहा दोस्ती या अपनाईत मे तब्दील नहीं हो सका, इत्फ़ाक़ से कुछ दिनों से उससे बातें करने और मिलने बोलने और सुनने का मौक़ा मिला और इन मौकों पर उसको क़रीब से समझने और जानने की नाकाम कोशिश मैंने जरूर की है यानि मै उसकी ज़िन्दगी का हर सफ़र हर लफ़्ज़ पढ़ने की कोशिश करता रहा, मैं प्यार मुहब्बत का बिल्कुल क़ायल न था मगर उससे मिलने के बाद मेरा जीने का अन्दाज़ बदलता चला गया मेरी सारी तबज्जो मुहब्बत शब्द पर मरकूज़ होगई। हर वक्त  मैं उसके ख़्यालो मे गुम रहने लगा मैने प्यार को जिस्मानी भुख़ से अलग करके देखा है यानि पवित्र और पाक मुहब्बत ही मेरे दिल का हिस्सा थी । धीरे धीरे मुलाक़ातें अपना असर दिखाने लगीं और मैं उसकी जादूगरी मे गिरफ़्तार होता चला गया लेकिन उसके ख़्यालात मे मुझे साफ़ गोई और पाकीज़गी साफ़ साफ़ नज़र आती थी उसके जज़्बात में इन्सानियत थी तो मासुमीयत की भी कोई कमी मुझे नज़र नही आती थी लेकिन उसके दिल में एक छिपा छिपा दर्द भी मैंने महसूस किया था अच्छी गुफ़्तगु बग़ैर कोशिश के या इरादे के दो इन्सानों को हमेशा क़रीब लाती चली जाती है । मुझे उसकी बातें करने का अन्दाज़ इतना लुभाने लगा था कि मैं नींद में भी उसकी आवाज़ मूहसूस करने लगा था उसके जज़्बात इतने खुबसुरत होते थे कि मेरे वजूद को पिघलाने लगते थे लेकिन मैने महसूस किया कि वो कभी होश से बाहर नहीं गई उसकी दानिश मंदी मेरी अक़्ल पर भारी पड़ती नज़र आती थी , उसने एक बार कहा था क्या ख्वाब देखना बुरी बात हे मैंने कहा नहीं क्या किसी को पाकर खो देना आसान होता है , और यह कहते कहते वाकई कही ख़लाओ मे खो गई उसकी आंखें नम हो गई थी उसकी यै हालत देखकर मै तड़प उठा लेकिन मेरी ज़बान भी हरकत न कर सकी जैसे मेरे पास कोई शब्द नहीं थे ये मेरे अहसास पर किसी ने पहरा लगा दिया था मैं बहुत कुछ कहना चाहता था और मेरे हाथ उसके चेहरे की तरफ़ उठते उठते रह गये जैसे मेर वजूद ने ज़ब्त से काम ले लिया हो बड़ी कोशिश के बाद मेरे लबो ने  हरकत की तो मेरी ज़बान से बस उसका नाम निकला बस ज्यादा कुछ बोल ही न पाया , दिल में तो जज़्बात व एहसासात का एक तूफ़ान सा उठने लगा जी चाहता था की उससे बहुत सारी बाते करूं उसे बता दूं कि मेरी ज़िन्दगी का तुम मरकज़ बन गई हो लेकिन बात की नजाकत ने मुझे ख़ामोशी का लिबास उड़ा दिया था मैं जानता था वो शादी शुदा है अपने सुहाग की अमानत भी फिर वो मेरे दिल से निकलने का नाम हीन ले रही थी मैं उसके दर्द की गहराइयों उतरना चाहता था , जानना चाहता था उसका दर्द और बीच की हर दीवार को गिराकर साफ़ साफ़ बात करन चाहता था लेकिन ये क्या मेरे दिल से आवाज़ आई तू ग़लत सोच रहा है कौन है यो दीवार , दीवार तो तु ही है , नहीं ये झूठ है मैं दीवार नहीं हुं तभी मोबाईल में मेसेज आने का एलर्ट दिखा तो मैंने बेमन से मोबाईल का मेसेज खोला तो देखा ये उसका ही मैसेज था लिखा था सुनिये क्या हो रहा मैं कल आपको अपने मम्मी पापा के यहा मिलूगी क्योकि  मुझे मायके जाना है  मैं वहीं पापा के घर पर इन्तज़ार करुंगी आप जब चाहे , आ जाएं  न आए तो मैं गुस्सा हो जाऊंगी मेरे दिल में फ़िर कशमकश होने लगी  मेरा दिल हिलोरे मारने लगा  फ़ि़र वो दिन आ ही गया और मैं खुद को तैयार करके कई बार आइने के सामने संवारता रहा  और फ़िर उसके पापा के घर पहुंच गया जहां मेरा जाना पहली बार हो रहा था। जहां पहुंचकर मुझे  जैसे लगा सारा परिवार मेरे ही स्वागत में खड़ा है। थोड़ी देर में मैं भी सभी परिवार के बीच बैठा हुआ था इधर उधर की बातों के बाद सबने  भोजन किया इसी बीच आपस में  परिचय भी हुआ। भोजन के   बाद हम जिस  कमरे में  थे बैठे  वहां   मैने देखा बहुत सी तस्वीरे लगी थी जिसको देख कर मैं पहले तो घबरा सा गया जैसे मेरी ही तस्वीरें दीवारों पर लगी थीं हुबहु । लेकिन मेरी एक तस्वीर पर स्वर्गीय लिखा था मुझे लगा जैसे मैं मर चुका हुं । यक़ीनन  ये तस्वीर आपकी नहीं है मगर आपके जैसी ज़रूर है हां मैने जब पहली बार आपको देखा तो मुझे लगा मेरे भैया वापस आ गए है उसकी आवाज़ एसी लगी जैसे कोई मेरा गला दबाने की कोशिश कर रहा है उसकी आंखे बाते करते करते भीग गई थी उसका सारा परिवार ख़ामोश था लेकिन फिर भी कही ख़ुशियों की आहट भी नज़र आ रही थी इतने में एक खुबसुरत सी बच्ची अपने हाथो में पूजा की थाली लेकर आ गई और फिर उसने भी कहा आओ भैया बैठो मैं आपको राखी बांधती हुं। आज वर्षों बाद मैं आपको इस बंधन में बांधुंगी फ़िर उसकी तरफ़ मेरा हाथ बरबस ही  बढ़ गया  और नम आंखों   के साथ उसने मेरे हाथों  में राखी  बांध दी । मेरे समझ में  साफ़  आ गया  था कि  प्यार  का एक रंग नहीं होता  इसके  अनेक रंग  हैं।मेरा  रंग उड़  चुका था  और मुझ पर नया  रंग चढ़ा दिया गया  था। जो अब कभी भी  नहीं  उतर पायेगा । वो बहुत ख़ुश थी । उसको उसका  भाई मिल चुका था ।फ़िर बाहर की तरफ़ से  आवाज़ आई  लो जीजाजी  भी  आगए।