पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता जिसका
शीर्षक है “सहारा”:
सूखी पड़ी हुई थी कबसे हर साख की डाली
आने से तेरे देखो कैसे गुलज़ार हो गई।।
आंखो की चमक कबसे धुंधला सी गई थी
आने से तेरे रोशन पूरी कायनात हो गई।।
डर डर के जी रहे थे अपने ही घर में हम सहारे से
तेरे मुझमें ताकत हजार आ गई।।
कोशिश किया था सबने मुझे दूर लेे जाने की
थामा जो तूने हाथ तो नजदीक आ गई।।
इस उम्र के पड़ाव में कोई नहीं अपना तेरे बाहों के
सहारे से मै महफूज हो गई।।
उम्मीद थी हमें की तुम एकदिन आओगे जरूर
आने से तेरे जिंदगी हसीन हो गई।।
पाला था जिसको कुल का दीपक समझ करके
ऐसा बुझा कि ज़िंदगी अंधेरे से घिर गई।।
माली हो तुम इस गुलशन के ये तुम बिन ना खिलेगा
आने से तेरे बगिया में बहार आ गई ।।