पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “!! जब-जब तुम्हे सोचती हूँ !!”:
जब-जब तुम्हे
सोचती हूँ
हृदय में एक अजीब सी स्पंदन-सी हो उठती हैं
कुछ लिखने बैठ जाती हूँ
उन कोरे कागज़ पर
कुछ लिखती कुछ मिटाती
मानो मैं तुम्हे अपनी कविताओं से
अपनी भावों को बयाँ करती हूँ।
संभलती हूँ फिर
कभी गिर जाती हूँ
तुम्हे समझकर खुद को समझाती हूँ
जो हवाएँ आस-पास गुज़रती है
बस तुम्हे महसूस कर उनको ख़ुद में समेटती हूँ।
कैसे बयाँ करूँ तुमसे
जब-जब तुम्हें सोचती हूँ
तेरी तस्वीर को निहारती हूँ
दीदार की ख्वाइश अपने दिल में पिरोती हूँ।
बहुत शिकवा है
तुमसे
तुमसे मिलते ही सबकुछ बयाँ करूँगी
थोड़ी मस्ती थोड़ी तकरार करने की आस में
चेहरे पर एक अलग सी चमक आ जाती है
जब-जब तुम्हे सोचती हूँ
लबों पर हल्की मुस्कुराहट सी छा जाती है।
तुम्हें नहीं पता
जब-जब तुम्हे सोचती हूँ
दिल की रफ़्तार बढ़ जाती है
खुद को भूल तुममें यूँ खो जाती हूँ
तुम्हें ख्यालों की गीत बनाकर
अपनी लबों से गुनगुनाने लग जाती हूँ।
हृदय में एक अजीब सी स्पंदन-सी हो उठती हैं
कुछ लिखने बैठ जाती हूँ
उन कोरे कागज़ पर
कुछ लिखती कुछ मिटाती
मानो मैं तुम्हे अपनी कविताओं से
अपनी भावों को बयाँ करती हूँ।
तुम्हे समझकर खुद को समझाती हूँ
जो हवाएँ आस-पास गुज़रती है
बस तुम्हे महसूस कर उनको ख़ुद में समेटती हूँ।
कैसे बयाँ करूँ तुमसे
जब-जब तुम्हें सोचती हूँ
तेरी तस्वीर को निहारती हूँ
दीदार की ख्वाइश अपने दिल में पिरोती हूँ।
तुमसे मिलते ही सबकुछ बयाँ करूँगी
थोड़ी मस्ती थोड़ी तकरार करने की आस में
चेहरे पर एक अलग सी चमक आ जाती है
जब-जब तुम्हे सोचती हूँ
लबों पर हल्की मुस्कुराहट सी छा जाती है।
जब-जब तुम्हे सोचती हूँ
दिल की रफ़्तार बढ़ जाती है
खुद को भूल तुममें यूँ खो जाती हूँ
तुम्हें ख्यालों की गीत बनाकर
अपनी लबों से गुनगुनाने लग जाती हूँ।