पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नरेंद्र सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “हे द्रौपदी!”:
ऐ द्रौपदी! अब शस्त्र उठा ले
कृष्ण नही अब आएगा,
कोई भाई ही इस कलयुग में
तेरा चीरहरण कर जायेगा।
रेप करेगा ,जीभ भी काटेगा
दरिंदे सरिया भी डाल जाएगा
हे द्रौपदी!अब शस्त्र उठा ले
कृष्ण नही अब आएगा।
चारो ओर हवस के पुजारी
जो हवस का शिकार बनाएगा
अपनी रक्षा स्वयं करो अब
कोई नही तुम्हे बचा पायेगा।
बाहर निकलो मजबूत बन अब
हवसी से कहीं भी निबट सको।
तुरंत दुर्गा का ऐसा अवतार बनो
ताकि दरिंदो से तुम सलट सको।
अब न कामिनी,न अबला बनना
अब न कोई भावनायों में बहना,
अस्त्र शस्त्र से सजकर रहना
अत्याचार अब मत सहना।
कठोर बनो, दृढ़ बनो अब
दुष्टों से टक्कर लेना है
जब कोई दरिंदगी दिखाए
तब उसका प्राण हर लेना है।।
हे द्रौपदी!अस्त्र उठा ले
अब भाई कृष्ण न आएगा।
कृष्ण नही अब आएगा,
तेरा चीरहरण कर जायेगा।
रेप करेगा ,जीभ भी काटेगा
दरिंदे सरिया भी डाल जाएगा
हे द्रौपदी!अब शस्त्र उठा ले
कृष्ण नही अब आएगा।
चारो ओर हवस के पुजारी
जो हवस का शिकार बनाएगा
अपनी रक्षा स्वयं करो अब
कोई नही तुम्हे बचा पायेगा।
बाहर निकलो मजबूत बन अब
हवसी से कहीं भी निबट सको।
तुरंत दुर्गा का ऐसा अवतार बनो
ताकि दरिंदो से तुम सलट सको।
अब न कामिनी,न अबला बनना
अब न कोई भावनायों में बहना,
अत्याचार अब मत सहना।
कठोर बनो, दृढ़ बनो अब
दुष्टों से टक्कर लेना है
जब कोई दरिंदगी दिखाए
तब उसका प्राण हर लेना है।।
हे द्रौपदी!अस्त्र उठा ले
अब भाई कृष्ण न आएगा।