पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शिवचरण चौहान की एक कविता जिसका शीर्षक है “रावण नहीं मरा”:
रहे जलाते और
मारते
रावण नहीं मरा।
अट्टहास कर रहा
आज भी
रावण खड़ा खड़ा।।
राम कथाएं मंचित
की हैं
पाठ अखंड किए।
मन का रावण मार न
पाए
लाख प्रयास किए।
विजय पर्व हम रहे
मनाते हैं
रावण नहीं मरा।।
मरा मरा जप
बाल्मीकि जी
राम समान हुए।
मुख में राम बगल
में छूरी
हम हैं लिए हुए।
हम छलते रह गए
स्वयं को
रावण नहीं मरा।।
रावण बनना बहुत
सरल है
बनना राम कठिन ।
मन के भीतर राम
दशानन
लड़ते हैं पल
छिन।
राम ले गए जल
समाधि
पर रावण नहीं
मरा।।
अट्टहास कर रहा
आज भी
रावण खड़ा खड़ा।।