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लघुकथा: क्या आपकी माही को आप पर भरोसा है? (मोना सिंह “मोनालिशा”, पूर्णिया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोना सिंह मोनालिशा की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “क्या आपकी माही को आप पर भरोसा है?":

ग्यारहवीं में पढ़ने वाली माही.. बहुत साधारण सी प्यारी  लड़की बहुत खुश थी आज। पापा ने उसके लिए उसके पसंद के रंग की साइकिल ला दी थी। माही अब खुद को बहुत बड़ी समझने लगी थी। हो भी क्यों ना भला। ग्यारहवीं कक्षा कोई छोटी कक्षा थोड़ी ना है। उसे एक अब ट्यूशन पढाने शिक्षक घर पर नहीं आ रहे थे। वो अपने सहेलियों के संग टिन टिन साइकिल की घंटी बजाते हुए कई विषयों के अलग अलग ट्यूशन पढने जाती थी। बहुत खुश थी।
एक दिन माही नियत समय से ट्यूशन के लिए घर से निकल रही थी। अभी वो निकली थी कि पुनः वापस आ गई। आते ही उसके पापा ने दरवाजा खोला। पर पापा तो पापा अंदर आने भी ना दिया वहीं कारण पुछने लगे। बताओ क्या हुआ। घबराहट में माही ने कहा पेन छुट गया है। पापा की आँखों में बिना देखे। उसके पापा बोले बेटा यही रहो मैं पेन लेकर  आता हूँ। माही के पास कोई रास्ता नहीं था वो वहीं खडी रही। पापा आये अपनी कलम ही माही को पकड़ा कर बोले अब जाओ। माही क्या करती कलम लिया और चलने लगी। पर उसके चेहरे की घबराहट बिल्कुल वैसी थी।
जब वो ट्यूशन की क्लास खत्म करके वापस आई तो उसकी माँ ने बड़े प्यार से उससे पुछा "बेटा क्लास कैसा रहा ?" माही ने जबाब दिया और काम में लग गई। जब माँ को पूरा यकीन हो गया कि इसके दिमाग में सुबह वाली बातें निकल गई है तो मम्मी ने पुछा क्या हुआ था सुबह? सच में तुम्हारी कलम ही छूटी थी या बात कुछ और थी। माही सुनकर स्तब्ध रह गई। फिर उसने माँ को अपने वापस आने की वजह बताई।
तभी पिताजी भी आ गये। माही से बोला आपकी कलम तो मिली ही नहीं। माही ने धीरे से बोला कलम नहीं छूटी थी। आप भी सोच रहे होंगे की तो बात क्या थी?
 
बात यह थी की जैसे ही माही ट्यूशन के लिए निकलती उसी समय कुछ लड़कों का झुंड भी उसके घर के पास रहने वाले शिक्षक के पास पढने आते थे। अब लडकों की हंसी ठहाके या कहिये कुछ तंज जो उस उम्र के बच्चे कर सकते हैं से माही डरने लगी थी। वो उन्हें देखकर घबरा जाती थी।
 
उस दिन जब वह निकली तो उसके पापा घर पर ही थे। बिटिया को साइकिल से जाते देखने के इच्छुक पिताजी खिड़की से सब देख रहे थे। अपने बच्चों को माता पिता से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। उन्होंने माही को बाहर रोक कर उसे भीड़ का सामना करने की हिम्मत दी।
माही के पापा ने बोला डरने या वापस आना सही नहीं है। आप आज के बाद कभी भी यह हरकत नहीं दुहरायेंगी। अगर कुछ भी गलत लगे तो वही आवाज उठाईये। पापा आप पर भरोसा करते हैं। और हमेशा साथ देंगे अगर आप सही रहेंगी।
 
ये बात बहुत छोटी और आम है पर माता पिता अगर बच्चों के ऐसे छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखें और उचित मार्गदर्शन करें तो उनके अंदर बहुत बड़ी विश्वास की नींव रख सकते हैं।
माही के लिए ये शब्द अनमोल बन गये। अब उसे डर नहीं लगता। क्योंकि उसे खुद पर और माता पिता पर पूरा भरोसा है।
 
माही का आपके लिए  एक सवाल  "क्या आपकी माही आप पर भरोसा करती है?"और एक संदेश है...
"आप अपनी माही पर भरोसा जरूर करें.... । "
 
आखिर अभिभावकों का बच्चों पर  भरोसा ही तो  बच्चों के अंदर विश्वास की पहली नींव रखता है... इस नींव को रखना प्रारंभ करें।