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कविता: बेवफा से वफा की उम्मीद लिए बैठे हैं (प्रीति प्रिया, हैदराबाद, तेलंगाना)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम
हिन्दी
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एक दिया क्या जला अंधेरे सिमट के बैठें हैं,
इक लौ के डर से दिये तले अंधेरे लिपट के बैठें हैं।
 
जो तन्हा छोड़ गए प्यार की कश्ती बीच मझधार में,
दिल में बसे उनके यादों से यूं हम लिपट के बैठें हैं।
 
वो देख के भी अनजान थे मेरे प्यार की गहराइयों को
फ़िर भी उससे वफ़ा के उम्मीद में मर मिट के बैठें हैं।
 
ख़ुद तो वो किसी गैर के बाहों में  जाकर लिपट गए
हम बेवजह मन में तन्हाइयों को लिए सिमट के बैठें हैं।
 
अब "प्रीति" ना लगा उस बेवफ़ा से तुम प्रीत की आस
दूर कर उन उदासियों को जो दिल से लिपट के बैठें हैं।