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कविता: नारी शक्ति (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “नारी शक्ति”:

नव दिन का तुम नवरात्र मानते रहो
और मातारानी को बुलाते रहो
अष्टमी का उपवास रखते रहो
रोज भंडारे -जगराता कराते रहो
कन्याओं को भोजन कराते रहो
और गर्भ में ही बेटी  निपटाते रहो
नारी शक्ति का तुम गीत गाते रहो
जुल्म पे जुल्म पत्नी पे ढाते रहो
बहु भी बेटी तुम गीत गाते रहो
और दहेज़ खातिर बहु को जलाते रहो
बेटियों के भले की योजना चलाते रहो
और बेटियों से ही दुष्कर्म करते रहो
बंद भी करदो ये सब नहीं तो होगा बुरा
वक़्त बदलेगा तब तुम भी पछताओगे
नारी चंडी बनेगी अगर जो कभी
चाह कर भी ना खुद को बचा पाओगे
पाक कर को नियत को अभी है समय
वर्ना ज्वाला बनी तो तुम जल जाओगे
देख लो माता सीता और रानी द्रोपदी जी को
ना वंश रावण का बचा ना ही कौरव बचा

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