पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार महेन्द्र सिंह 'राज' की प्रार्थना (मां दुर्गा की):
देवि पैयां पडूं , तुमसे विनती
करूं।
मेरा उद्धार कर
दे जगत वन्दिनी।।
माता दुर्गे सुनो , कुछ
तो मन में गुनो।
एक अवगुण के कारण,न दण्डित करो।।
ये तो माया की साया है, सुन माते मेरी।
कर कृपा मेरे
ऊपर से , खण्डित करो ।।
एक गलती के कारण,आजीवन की पूंजी।
माता
जगदेश्वरी यूं न , भण्डित
करो।।
मैं महा मूर्ख
प्राणी हूं, देवि माते
सुनो।
मूर्खता हर के मुझको भी पण्डित
करो।।
महिसासुर को मारा , भक्तों
को उबारा ।
कर कृपा मुझको महिमा
मण्डित करो ।।
दोषी नादान हूं
पर , तेरा भक्त
हूं।
मेरी प्रार्थना को न
, लम्बित
करो।।
मैं याचक खड़ा
हूं , तेरे द्वार पर ।
नाम मेरा भी
भक्तों में , नम्बित करो।।
देवि पैयां पडूं , तुमसे विनती
करूं ।
मेरा उद्धार कर
दे , जगत
वन्दिनी ।।


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