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कविता: औरत हूं बुद्ध नहीं (सरिता गोयल, मुरैना, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरिता गोयल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “औरत हूं बुद्ध नहीं”:

 
    औरत हूं बुद्ध नहीं
  उमड़े विचारों संग बहती जाऊ
   लाग दूं  चौखट घर की
    संत शिरोमणि बन जाऊं
   अत्यंत विरल है मेरे लिए
   ममता से स्नेह ना लगाऊं
  तोड दूं हर मोह को
  वृक्ष तले धुनि  रमाऊं
  औरत हूं बुद्ध नहीं
 
 
   सरल सहज नहीं पथ मेरा
  मर्यादा  की कुंजियों में से राह बनाऊं
 छूं लू शिखर शिखा का
 कर्तव्य से नीरसता दिखाऊं
 निकल  पडू कानन में निशा संग
 आलोचना,अवेहलना की साज ना पाऊं
औरत हूं  बुद्ध नहीं ।।

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