पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:
|| रक्तबीज_१ ||
रक्तबीज का एक
बुन्द रक्त धरती मे रह गया
वो बुन्द आज मचा
रहा है हाहाकर हर ओर
रक्तबिज का वह
जालिम सन्तान बडा हो गया
उसने माया से
आदमी का रुप धर लिया है
उपर से निचे तक
वह इन्सान जैसा दिखता है
मगर खुन इन्सान
का वह चुपके से पिता है
उसने अलग अलग
भाषा बोलना सिख लिया
टाई कोर्ट शर्ट
धोती कुर्ता जुत्ता भी पहन लिया
वह किसान को बिज
बडी दाम लेकर बेचता है
फसल लेकिन सरकारी
दाम से कम मे लेता है
वह मन्डियो मे
सब्जियो कि जमाखोरी करता है
अपने मनमाने दाम मे
बाजार मे बिक्री करता है
वह खादी जुत्ता
पहन थाना मे मुस्काते रहता है
आदमी कि जेब
देखकर न्याय करता रहता है
वह रक्तबीज का
सन्तान है वह बढता जाता है
खेत से शहर हर ओर
वह पाँव पसारता जाता है
शिक्षा व्यवस्था
का वह इन्चार्ज बनकर बैठा है
वह भाषा बोलकर आदमी
को अपना करता है
स्कुल कि कुर्सी, चाक डास्टर किताब खाता है
योजना बनाता है
फिर उसे ही बाट कर खाता है
वह टोपी पहन कर
विधानसभा संसद जाता है
जिसके लिये योजना
बनाता है, उसे ही खाता है
संसद मे रोटी
मकान कि बात करता जाता है
डकार मारकर चैन
से खुद का मकान बनाता है
न्यायाधीश बनकर
वह कलम चलता रहता है
अपराधी के साथ
दोस्त जैसा व्यहार करता है
सरकारी आफिस मे
वह काम करता रहता है
हर काम वह टेबल
के निचे गान्धी पर करता है
सफेद पोशाक मे
रात दिन सडक गली खेत पर
नारी को नोचता
फिर अपने गिरोह को बुलाता है
मोची दर्जी नारी
भुखा सब पर नजर उसकी है
हाथ मिलाने के
बहाने वह उसका खुन चुसता है
ये रक्तबीज कि
हवसी दमनकारी क्रुर सन्तान है
जो इन्सान कि भेष
मे रहता है मगर है हैवान
हर गली हर
मुहाल्ले मे वह धर्म कि बात करता है
तिलक चादर मे
लडाता है खुन हि खुन बहता है
मेरे आपके घर के
बाहर उसका पहेरा रहता है
पुरे देश मे अपना
जाल बिछा कर रखता है
काली से भुल हुई
या साफाई कर्मी से हुई भुल
एक बुन्द रक्त कि
बिछा चुका है जाल हर ओर
वह गुरराता है
पिने को खुन हर गली हर ओर
दिन मे उजाले मे
रात मे हर जगह है उसका बास
रक्तबीज कि
सन्तान का कौन करेगा अब वध
वह हर ओर है हर
जगह हर मकान मे बैठा है
ठेकेदार नेता
उद्योगपति व्यापारी वकिल शिक्षक
अभीनेता डाक्टर
मुल्ला पन्डित पुरोहित महाजन
वैज्ञानिक संसद
पन्चायत पुलिस कवि स्वयंसेवक
इन्जिनियर
न्यायाधीश सबमे है यह क्रुर रक्तबीज
एक एक कर फैल गया
है इसके रक्त का बीज
चुस रहा है खुन
पनिसा आतं पित हर एक का
कोई घर नही है जो
इसके हमले से है सुरक्षीत
काली बनकर पियेगा
इसके रक्त के बीज कौन ?
सब ने जान लिया
है इनकी है बडी बडी जमात
अभिमन्यु कि तरह
इनकी जमात भेदेगा कौन ?
राम कि तरह इनके
नाभि मे वार करेगा कौन ?
जटायु जैसा इस
दानव से लडते हुये मरेगा कौन ?
चुस चुस कर
इन्सान का रक्त वह है महा बलवान
गदर मौत का जिने
के लिये करेगा अब कौन ?
रक्तबीज का वध हर
कोई चाहता है यथा सिघ्र
महाभारत करने पर
हर कोई है डरा हुआ मौन
पडे लिखो ने तो
खुद रक्तबीज को पाल लिया है
देहात से ग्वाला
कृष्ण क्या तैयार करेगा फौज ?
मेरी यह बाते
सुनकर रक्तबीज हो जायेगा क्रुद्ध
दौडेगा पिने को
रक्त मेरा लालची यह रक्तबीज ।
अपनी माया से दुनियाँ
को लिया है उसने मोह
व्यस्त है अपनी
साम्राज्य खडा करने मे हर ओर
सुनाता हु कैसे
छक्का पन्जा करता है वह
ओर आगे कथा होगी
घनघोर...


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