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कविता: कोरोना का प्रहार (पार्वती कानू, हेमिल्टनगंज, अलिपुरद्वार, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पार्वती कानू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कोरोना का प्रहार”:
 
ना जाने छा गई हैं कैसी
अंधियारी,
चारो ओर फैल चुकी हैं महामारी।
ऐसा समय आया कि जहरीली हवा बन गई,
इंसानो से था लगाव अब उनसे दूरियां ही दवा बन गई।
बड़ी-बड़ी शहरे सुनसान हो गई,
हर सड़क ,गाँव ,गली, मुहल्ला अब वीरान हो गई ।
सुकुन की उड़ान आज परिंदो के पैरो में हैं,
क्योंकि शिकारी बन्द अपने घरो में हैं।
जाने कब खत्म होगा यह अंधेरा,
बदल चुका हैं गरीबो का बसेरा।
ऐसे समय में कुछ लोग अपना गुजारा तो कर रहे हैं,
लेकिन वो दिहाड़ी मजदूर क्या कर रहे हैं।
कुछ लोग आकर उनकी मदद तो करते हैं,
पर वो मजदूर क्या करे जो तस्वीर में छपने से डरते हैं।
क्योंकि मदद मिलती हैं उन्हे एक दिन ,
पर तस्वीर में छप जाते हैं कई दिन।
जो उनकी परिस्थिति बताती हैं,
जो उनकी गरीबी जताती हैं।
रिश्तो-नातो के मायने बदल गए,
जिदंगी क्या, अब तो मौत के मतलब गए।
ना कंधे मिल रही हैं, ना श्मशान मिल रहे हैं ,
गैर तो क्या, अब अपने ही दूर खड़े रो रहे हैं
अब तो मौत से भी डर लगा हैं,
क्योंकि अंतिम संस्कार लावारिश की तरह होने लगा हैं।
ना जाने यह कैसा हाहाकार हैं,
बस चारो ओर कोरोना का ही प्रहार हैं।

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