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कविता: डिजिटल भारत (निशा ठाकुर, लूकशान, नगराकाटा, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “डिजिटल भारत":

सुनने में आया है
भारत digital हो रहा हैं
इंटरनेट की दुनिया से लेकर
चांद तक को छू रहा हैं
 
सरकार की नई नई स्कीम
एक नई राह दिखा रही हैं
मजदूरों और किसानों को
Digital तरीके सीखा रही हैं
 
पर मुझे समझ नहीं आया,
आखिर डिजिटल का सही अर्थ क्या है????
 
 
वही सड़कों पर बेघर
जिनका नहीं बसेरा है
नंगे बदन और भूखे पेट
और मजबूरियों ने घेरा हैं
 
कई नन्ही हाथो को
किताबो की आश है
ऐसे बच्चे आज भी है
जिन्हे रोटी की ललास है
 
मुफ्त में बट रहे अनाज
क्यों पत्थरो से भरे पड़े है
बैंक के खाते की रकम
क्यों गरीब में नहीं पड़े हैं
 
शहरों की ऊंची बिल्डिंगे
हर रोज पैर पसार रहे हैं
सरकारी कर्मचारी भी
अपना पलड़ा झार रहे है
 
खेती करता वह बूढ़ा किसान
आज भी कर्ज चुका रहा हैं
खाली हाथ फिर वापस आकर
बच्चो से अश्रु छुपा रहा है
 
घिसी लकीरों वाली हाथ
अस्पतालों के बिल समेट रही हैं
सरकारी सुविधाएं क्यों
निजीकरण में लेट रही हैं
 
यह उसी भारत की  मिट्टी  है
जो आसमान पर पहुंच गई है
पर अफसोस यह डिजिटल इंडिया
अब भारत बनने में चूक गई है