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रक्तबीज_४ || सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र", जालापाडा बस्ती, बानरहाट, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:

|| रक्तबीज_ ||
 

रक्तबीज का एक जालिम क्रुर कपुत
सामने खडा हुआ है पिकर सबका खुन
नाम उसका है "पन्चायत" अवधुत
रौब झाडता है हर ओर टपकाता है खुन ।
 
कई युगो से उसने किया है शासन मगरुर
अपनी तलवार से मिटाता है हर एक शबुत
गाव का वह सरताज चलाता है अपना बाण
तोन्द मे दबाता जाता है हर एक मकान ।
 
कोई ओर नही है, न ही उसका है कोई छोर
सफेद पोशाक मे रक्तबीज है वह चोर
लाशो और भुख का वो असली मर्ज जानता है
ढहते हुये मकान का वह है आमदमखोर ।
 
राशन का दाना दाना उसके जिभ का है खाना
मनरेगा कि दहाडी पर इतराता जाता है
पैसेबाज को मिलता है योजना का लाभ
आम आदमी का करता है हर बार बलात्कार ।
 
इसकी साख बहुत बडी बडी महलो पर है
नाम भले ही छोटा है पर हत्या करता है बडी
शराब कबाब से खेतो मे लगाता है बेडी
किसका हो इन्तकाम , मौत का लाता है फरमान।
 
 
योजना बनाता नही यह बिगाडता जाता है
पाँच साल तक वह मायावी हस्ता जाता है
घर मकान रोटी रोजी सब इसके पास है
फिर भी भुखा रहता है खुन का वह हर बार ।
 
बेखबर बेइन्तहा उसका अपना जहर है
मनरेगा हो या उजाला या हो आवास योजना
तुफान कि राहत समाग्री सब वह देता है
मगर किसको देता है वह केवल जानता है ।
 
 
सबसे ज्यादा क्रुर और हत्यारा यही होता है
जो हर काम को बपौती मानकर करता है
दारु का ठेका भाई के नाम पर चलाता है
मनरेगा कि देहाडी आधी खुद ही लेता है।
 
 
वही गली मे योजना का लाभ दिलाता है
जो इसके तलवे कुत्ते जैसे चाटता जाता है
जो भी जाता है इसके विरोध मे कही भी
रातो रात उसका मकान जल जाता है ।
 
 
मैने बहुत बार सुना है खबरो मे अक्सर
सार्वजनिक तालाब अपने जमिन मे बनाता है
सडक पुल का खम्बा अपने घर मे गाडता है
सरकारी राशन भी उसी के घर मे आता है।
 
जो भी अच्छा आदमी पन्चायत बन्कर जाता है
वो रक्तबीज कि मार खाकर घर वापस आता है
जो उसे मिटाने युद्ध करने जाता है
वो लहुहुलान होकर दम तोड जाता है ।
 
आवाजो के घेरे मे चित्कार हो जाती है
महा समर को पूरा युग बित जाती है
रक्तबीज युही आगे बढते ही जाता है
विरभद्र बनकर उससे लड्ने कौन आता है?
 
महा समर कि गुन्जाईस हर बार होती है
युद्ध का बुगुल बजने से पहले रात होती है
रक्तबीज का कट्टर विरोधी हुन्कार भरता है,
अर्जुन ही गद्दी मे जाकर फिर रक्तबीज होता है।
 
 
ब्रह्माण्ड कि दशा दुर्दशा सब पर आयी है
एक बुन्द रक्त अब बाढ बन्कर आयी है
सिरहन पैदा हो पेट मे मरोड आती हो
हाथ उठाओ मौत से जिन्दगी कि बुन्द पाओ ।

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