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कहानी: मिलन की एक रात (मंगला श्रीवास्तव, साकेत नगर, इंदौर, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है।  आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मंगला श्रीवास्तव की एक कहानी जिसका शीर्षक है "मिलन की एक रात":

रात के एक बजे थे ।समीर अपने लैपटॉप पर बैठ काम कर रहा था। समीर अपनी कम्पनी की तरफ से शिमला आया था।उसको यहां अगले महीनें होने वाली कांफेंस की तैयारी करनी थी। यहां कम्पनी का होटल व रेस्ट हाउस दोनो ही थे इस कारण अधिकतर कांफेंस यही होती थी।इस कारण वो अक्सर ही यहां आता रहता था।
वो कम्पनी के बने रेस्ट हाउस में रुका था।
वो एक बहुत सुंदर जगह थी ,ऊंची पहाड़ी पर बना रेस्ट हाउस चारो और हरे भरे पहाड़ से घिरा हुआ था  ।जहां से शिमला के चारो औऱ का दृश्य दिखता था ।पहाड़ो से गिरते झरनों की आवाज भी शांत वातावरण में सुनाई देती थी।
समीर अक्सर कितनी बार शिमला आता था।
इस कारण इस जगह से उसको मानों एक लगाव से हो गया था।रेस्ट हाउस में काम करने वाले सभी कर्मचारी उसको बहुत अच्छी तरह पहचानते थे। व उसका बहुत ध्यान रखते थे।
वो भी सभी काम करने वाली चाहें वो छोटा सा 
भी क्यों न हो उससे भी स्नेह रखता व जाते समय भी अपनी तरफ से सभी को अच्छी टिप देता था।
आज भी अपने काम मे मशगूल था। पहाड़ी रात वैसे भी बहुत जल्दी ही गहरा जाती है।इस कारण बहुत ही नीरवता व शांति सी थी।सभी काम करने वाले जा चुके थे बस जो सर्वेंट क्वाटर में रहते थे वो लोग व गार्ड ही थे।

वो भी ठंड होने के कारण अपने गार्ड हाउस में दुबके पड़े थे।
समीर अब काम खत्म कर सोने का सोच ही रहा था कि अचानक उसको लगा जैसे कोई उसके एकदम पास खड़ा है उसको देख रहा है।
उसके शरीर में एक सिरहन सी हुई,पर उसने उसको वहम समझ कर दिमाग से झटक दिया।
और सोने के लिए उठ खड़ा हुआ।
वो वॉशरूम होकर आया और बेड की तरफ बडा तो उसको लगा कि कोई और भी उसके साथ चल रहा हो ।
उसको कुछ समझ नही आ रहा था कि उसको सही में ऐसा लग रहा है या उसका भृम है केवल।
वो जाकर लेट गया था व उसने बत्ती बुझा दी थी।वो अपने वहम के बारे में सोचते हुए नींद के आगोश में जा चुका था।
अगले दिन जब वो सोकर उठा तो उसका सिर भारी से हो रहा था। पर वो फ्रेश होकर नाश्ता कर अपनी नई रूपरेखा की तैयारी करने लगा।
दोपहर को वो थोड़ा घूमने निकल गया ।पहाड़ी रास्ते पर घुमावदार सड़क चारों फैली हरियाली
एक तरफ गहरी खाई थी तो दूसरी तरफ पहाड़ी व बड़े बड़े लंबे पेड़ों की कतार ।उसके हाथों में कैमरा भी था जिससे वो अपने फोटोग्राफी के शौक को भी पूरा कर रहा था। एक जगह दूर से गिरते झरने की खूबसूरती को वो जब अपने कैमरे में कैद कर रहा था तो अचानक उसको 
लगा की किसी ने उसको  समीर कहकर आवाज दी ,उसने पलट कर देखा तो उसको कोई नजर नही आया ।फिर वो वापस फ़ोटो खीचने लगा ।
एक बार फिर आवाज आने पर वो पलटा तो देखा, एक परछाई सी पेड़ के पीछे उसको दिखी थी। उसने पूछा कौन है ?
देखा कि वो परछाई सामने आ गई थी।
वो देखने लगा वो बहुत ही खूबसूरत सी एक 
पहाड़ी लड़की थी। उसकी सुंदरता अप्रतिम थी
वो एकटक उसको देखना लगा था।
की अचानक ही वो बोली समीर,वो मानों एकदम से ख्वाब से जागा हो ऐसे चौक गया।
जी जी अपने कुछ कहा ?
आप मुझको कैसे पहचानती है ?
आपको मेरा नाम कैसे पता है ?
उसने लगातार प्रश्नों की बौछार ही कर दी थी।
अरे अरे इतने सारे प्रश्न वो भी एकसाथ और वो जोर से खिलखिलाकर हँसने लगी ,उसकी हँसी
ऐसी थी मानो मंदिर की घण्टी की झंकार ।
हँसते समय उसके सफेद मोती जैसे दांतों चमकने लगे थे।
समीर उसके पास आ गया था । उसको गहरी निगाह से देखते हुए उसने पूछा तुमने मुझको बताया नही ,तुम कौन हो ?
और मुझको कैसे पहचानती हो ?
वो अपनी उसी मुस्कान के साथ अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसको देखते हुए बोली आपको मैं बहुत समय से पहचानती हूँ।आप जब भी यहां आते है ।
मैं आपसे मिलने का सोचती हूँ ,पर आप अक्सर एक या दो दिन में ही चले जाते है।
इस बार अपनेआपको मिलने से रोक नही पायी।
आप मुझको अच्छे लगते हो इस कारण ।
समीर एकटक उसको देखते हुऐ बस उसको बातों में ही डूबा रहा। अच्छा अब में चलती हूँ
बाबा इंतजार कर रहे होंगे मेरा कहकर वो जाने
लगी,समीर अचानक मानो नींद से जागा हो।
अरे पर तुम्हारां नाम तो बताओ ?
वो खिलखिलाकर बोली शामली है मेरा नाम
कहकर वो दौड़कर पहाड़ पर चढ़ती चली गयी बड़े बड़े पेड़ो के बीच से।
समीर अब भी उसकी खूबसूरती में खोया हुआ था।वो भी गेस्ट हाउस आ गया था। वो वापस अपने काम को करने बैठा मगर अब उसका मन 
मानो खुद के पास ही नही था। शाम हो चुकी थी ।ठंड भी बढ़ गई थी उसने अशोक को बुला कर चाय का बोला और कमरे में आ गया।
अब भी वो शामली के ख्यालो में ही डूब था।
अशोक चाय लाया तो उसने उसको रोक लिया
बैठो अशोक कुछ समय है तुम्हारे पास?
हाँ शाबाजी  वो पहाड़ी भाषा मे बोला।
अशोक यहां आसपास और क्या है तुम तो सब देखे होंगे यहां पर। 
हाँ शाबाजी मैं तो यही का रहने वाला हूँ।
पास में ही एक पहाड़ी कस्बा है उसका यहाँ का चप्पा चप्पा देखा हुआ है मेरा फिर वो सब बताने लगा था।अच्छा एक दिन मुझको यहाँ पर
घुमाओगे ।
जी जरूर शाबाजी कहकर वो चला गया।
समीर उठकर अपना काम करने लगा था वापस।
रात को डिनर के बाद वो गेस्ट हाउस के गॉर्डन में टहलने लगा और शामली के बारे में सोचने लगा था।
अचानक आज भी उसको अहसास हुआ कोई उसके साथ चल रहा है।उसके पास उसने एक खुशबू सी महसूस की ,वो चौक कर आसपास देखने लगा पर उसे कोई दिखाई नही दिया था।
वो घबरा कर अपने रूम में आ गया व लेट गया। खिड़की पर लगा पर्दा जोर से हिला तो उसको लगा जैसे कोई चल रहा हो बाहर।
अगले दिन जब वो सोकर उठा तो देखा सुबह के दस बज चुकें थे ।वो कभी इतनी देर तक सोता नही था उसने जल्दी से अशोक को बुलाया व नाश्ता का बोला और  खुद नहाने चला गया।जब वो बाहर आया तब तक नाश्ता व चाय लेकर अशोक आ गया था।
शाबाजी तबियत खराब है क्या ?
आप आज बहुत देर तक सोयें।
हूँ कहकर वो चुप हो गया,था वो वापस काम करने लगा आज उसको सारी रूपरेखा तैयार कर रिपोर्ट दिल्ली भेजनी थी।
काम करते करते दो बजे चुके थे उसने ई मेल
कम्पनी के डायरेक्टर को भेज दी थी।
और वो जल्दी से तैयार होकर फिर निकल पड़ा
कल वाली जगह पर,उसको शामली से जो।मिलना था।
वो जब कल वाली जगह जब पहुँचा तो देख वहां शामली पहले से ही बैठी थी ऊंचाई से गिरते झरने को देख रही थी।
उसके लहरातें घने बाल हवा में उड़कर उसके चेहरें को चूम रहे थे।काले रंग के लहरदार गोटे वाली ड्रेस उस पर ऐसी लग रही थी मानो चांद काली बादल में छुपा हो।
वो धीरे से चलकर उसके पीछे पहुँचा और उसको चौकाने के लिए अपना हाथ उसकी आँखों पर रखने ही वाला था कि, इसके पहले ही खिलखिलाकर वो बोल पड़ी आ गए तुम समीर ।
वो बोला तुमको कैसे पता चला कि मैं ही आया हूँ। वो बोली आपका जिससे दिल  जुड़ जाता  है समीर उसकी खुशबू  व एहसास दूर से ही महसूस कर सकते हो। वो शामली के पास बैठा तो उसको लगा कि जो खुशबू उसने रात को महसूस की थी वही खुशबू उसको आज शामली में से आ रही थी मदहोश करने वाली। वो चौक गया था।
शामली क्या करती हो तुम ? उसने पूछा
कहाँ रहती हो यहां पर?
वो बोली समीर में यही पासकी पहाड़ी के ऊपरी  की बस्ती मे रहती हूँ।
मेरे पिता खेती करते है बस हम दोनों है माँ नही है। वो दोनों काफी देर तक बातें करते रहें।
समीर उसकी बातों में खो से गया था।
वो बोला शामली तुमसें मिलकर ऐसा लगता है मानों मैं तुमको बहुत समय से पहचानता हूँ।
कल मैं वापस दिल्ली जा रहा हूँ , पर अब तुमसें दूर जाने का मन ही नही हो रहा है।
शामली सुन कर चौक गई वो बोली क्यों ?
मैं जिस काम से आया था वो पूरा हो गया है ।
अब अगले महीने हमारी कम्पनी की कॉन्फ्रेंस
में आऊँगा । पर क्या मैं तुम्हारां एक फोटो ले सकता हूँ, शामली यह सुनकर  बोली नही समीर मेरे बाबा को नाराज हो जायेगे उनको पता चला तो। अच्छा मैं जाती हूँ बाबा इंतजार कर रहे होगें कहकर वो चली गई।
समीर उसको आवाज ही देता रह गया।
समीर गेस्ट हाउस आकर तैयारी करने लगा था,पर उसका ध्यान रह रहकर शामली की तरफ ही जा रहा था। वो एक खिंचाव से महसूस कर  रहा था उसके प्रति ।
रात को डिनर के बाद वो  गेस्ट हाउस के बने 
गॉर्डन में घूमने लगा। बारिश हो चुकी थी इस कारण ठंड बहुत बढ़ गयी थी ।समीर समीर
उसको आवाज सुनाई दी, तो वो पलट कर देखने लगा- आवाज शामली की थी ।
उसको अपने पास वही खुशबू जो शामली के पास होने पर उसने महसूस की थी वो आने लगी ।वो अचकचा कर सोचने लगा कि शामली उसके ऊपर हावी हो रही है । शायद इस कारण हर जगह हर वक्त वो उसको महसूस कर रहा है। परन्तु तभी उसको हल्का सा स्पर्श महसूस हुआ किसी कोमल हाथों का ,उसके मुहँ से निकल पड़ा शामली तुम इतनी रात को यहां कैसे आ गयी।
हाँ समीर तुमने जाने का बोला मेरा मन तुमसें 
मिलने को करने लगा इस कारण तुमसें मिलने
आ गयी हूँ।उसने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया था। वो उसको पास व सामने पाकर 
मानो मदहोश से हो गया,उसका मादक स्पर्श,उससे आने वाली खुशबू मानो उसको अलग ही दुनियां में खिंचती ले जा रही थी।
वो समझ नही पा रहा था वो क्या करे ।,इतनी रात को उसका इस तरह अचानक मिलने आना
उसका हाथों को पकड़ना सब कुछ उसको सपने जैसा लग रहा था।
मेरे साथ चलो समीर कहकर वो उसको ले चली अपने साथ । और वो बस उसका अनुसरण कर रहा था उसके साथ चलते चलते ।वो गेस्ट हाउस से निकल कर बहार आ गये थे।
समीर उसका हाथ थामें बस चल रहा था बिन कुछ बोले।पहाड़ी रास्ते व अंधेरी रात सुनसान सड़क और कोई भी नही दिख रहा था आसपास ।पर समीर को ऐसा लग रहा था मानो उसके आसपास एक रोशनी सी फैली हुई है।उसको कोई डर भी नही लग रहा था इस कारण। शामली और वो चलते चलते पहाड़ के ऊपर चढ़ने लगे थे।बारिश फिर से होने लगी थी।वो दोनों भीग गए थे।पहाड़ के ऊपर बसी छोटी सी बस्ती जहां उसको कुछ दूर दूर बसे घर की परछाइयां मद्धिम आती रोशनी में दिखाई पड़ रहे थे।
शामली उसको लेकर एक छोटे से घर के पास पहुँच गई थी ,समीर अंदर चलो यह मेरा घर है वह बोली।
वो अंदर आया वहां एक छोटा सा साफ सुथरा कमरा था उसमें  एक चारपाई  थी बस थोड़ा सामान रखा था।ठंड ले कारण वहा एक अलावा जल रहा था।दोनो बहुत भीग चुकें थे।और समीर को कंपकपी सी लगने लगी थी।
उसने अपना भीगा हुआ कोट उतार दिया जिसे शामली ने खूंटी पर टांग दिया था।
और अलावे लकड़ियां डाल दी ।समीर ने देखा कि शामली इतने भीगने के बाद भी वैसी ही थी उसको मानो ठंड का एहसास भी नही था।
वो उसके पास आकर बैठ गयी।उसके खूबसूरत चहरें पर भीगे बालो की एक लट चिपक गई थी। समीर आज उसको इतने करीब से देख रहा था ।वो बोला शामली तुम्हारे बाबा कहां है?
वो बोली वो आज शहर गए है सामान लेने।
उसने उसके चेहरे पर आई लट को एक तरफ कियालालटेन की रोशनी में उसका सुंदर चेहरा चाँद के समान चमक रहा था।उसके गुलाबी पतले होंठ देख समीर को मानो नशा से हो गया था।उसने शामली को धीरे से पास खींच कर अपनी बाँहो में ले लिया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिये और उसको बेहताशा चूमने लगा ।बाहर बारिश का शोर बढ़ चुका था ।और अंदर अलावे की लकड़ियां सुलग उठी थी।
जिसकी रोशनी में दो बदन की गर्मी मानो पिघल उठी थी एकाकार होने को  समीर शामली में पूरा समा गया न जाने कब उसको पता भी ना चला ।
उसका ये मिलन उसको एक अनोखा खूबसूरत मिलना था। वो सो चुका था शामली की बांहों में। 
सुबह जब वो उठा तो देखा वो अपने रेस्ट हाउस के रूम में ही सोया हुआ था। शामली उसका वो छोटा सा घर सब कुछ उसके ख्वाब की तरह गायब हो चुका था। वो चारों और नजर घुमा कर देख रहा था ।क्या वो कल रात की घटना उसका ख्वाब थी ,वो बारिश वो शामली का हाथ पकड़कर उसको अपने घर ले जाना भीगते हुऐ ,वो रात का मधुरमिलन सब कुछ।
उसका सिर भारी होने लगा था।उसको याद आया कि उसका कोट जो भीग चुका था।उसने नजर घुमा कर देखा वो वहां नही था ।बाथरूम में जाकर देखा तो वो वहां हेंगर पर टँगा हुआ था वह अभी भी गीला था ।उसको याद आया कि शामली को जब उस पर बहुत प्यार आ रहा था उसने उसके कंधें को जोर से काट लिया था।
उसने जल्दी से अपना नाइट सूट का शर्ट उतार कर देखा तो कंधे पर दांतों की एक गहरी छाप उसको दिखाई दी जिसको वो प्यार से सहलाने लगा था।
तो क्या वो सब सच था, पर फिर वो यहां कैसे आ गया ।सोचते सोचते उसका सिर चकरा गया था। उसने गर्म पानी का शावर चालू किया व उसके नीचे खड़ा हो गया ।काफी देर तक शावर लेने के बाद वो बहार आया तैयार होकर उसने
घण्टी बजा कर अपने लिए चाय व नाश्ता बुलवाया। आज उसकी बस थी दिल्ली के लिये,
पर उसने अपना जाना केंसिल कर दिया था।
वो आज शामली के घर जाने की सोच रहा था।
उसने अशोक से बोला अशोक आज तुम मेरें साथ चल सकोगें मुझको किसी की तलाश है।
वो बोला जी शाबाजी जरूर ।
दोपहर को वो दोनो पैदल ही निकल पड़े थे।
वो पहाड़ रास्ते से होकर ऊपर की तरफ चढ़ाई करने लगे तो अशोक बोला शाबाजी ऊपर तो हम लोगो की ही बस्ती है।मैं वही तो रहता हूँ ,
वो अब बस्ती के निकट पहुँच गए थे।समीर अपने दिमाग पर जोर लगाकर शामली के घर के आसपास का व घर की लोकेशन को याद कर रहा था।
आखिर उसको ध्यान आ ही गया कि शामली के घर के पास उसे झरने की आवाज आ रही थी शायद उसके घर के आसपास कही झरना था।
वो आगे बढ़ा बहुत सुंदर व्यू था  बादलों से ढकी थी पूरी पहाड़ी मानो सारे बदल नीचे उतर आए हो। वो अशोक से पूछने लगा कि तुम कब से यहां रहते हो अशोक ?
शाबाजी मेरा तो जन्म ही यही हुआ है ।परिवार 
यही पर रहता है ,बच्चें वपत्नी माँ पिताजी सब है।तुम तो सब को पहचानते होगें यहां रहने वाले सभी लोगो को। वो चलते चलते आखिर उस जगह पहुँच ही गए जहां कल शामली लेकर आई थी।
हाँ शाबाजी हमारी छोटी सी तो बस्ती है ।सब लोग एकदूसरे को अच्छी तरह पहचानते है शाबाजी।
वो शामली के घर के पास रुक गया था। अशोक तुम शामली नाम की लड़की को पहचानते हो क्या?
जो इस घर मे अपने बाबा के साथ रहती है।
शामली का नाम सुन कर अशोक चौक पड़ा ।
शाबाजी आप शामली को कैसे पहचानते हो।
आप उससे कब मिले हो ।
समीर बोला मैं उससे दो तीन बार मिला हूँ।
अशोक उसने रात वाली घटना का जिक्र उससे नही किया था।
शाबाजी शामली आपको कभी नही मिल सकती है ।पर क्यों ?-उसने पूछा
मैं इस घर पर भी आ चुका हूँ उसके साथ।
अब उसने बोला और घर का दरवाजा बजा दिया ।घर का दरवाज खुला तो देखा कि एक बहुत ही बुजुर्ग जिनकी उम्र लगभग अस्सी नब्बे साल की थी दरवाजा खोला ।
वो अपनी आँखों का चश्मा ठीक कर के उनको देखने लगे थे। आप कौन हो ?
तभी अशोक बोल पड़ा दाऊजी में हूँ अशोक
रामूजी का बेटा।
अच्छा आ बेटा आजा ये शाब कौन है?
ये हमारे शाबाजी है रेस्ट हाउस में रुके है,जहां मैं काम करता हूँ दाऊजी।
अच्छा समीर तब तक  घर के अंदर का मुआयना कर चुका था।हाँ यही जगह यही पलँग और सामने जलता हुआ अलावा सब कुछ वैसा ही था । अचानक उसकी नजर दीवार पर लगी एक बहुत पुरानी तस्वीर पर पड़ी ,उसमे दाऊजी और एक महिला जो उनकी पत्नी होगी उनके बीच शामली खड़ी थी।तस्वीर ब्लेक व्हाइट व बहुत पुरानी व धुँधली हो गयी थी। दाऊजी कैसे हो आप ? अशोक उनसे पूछने लगा ।
बस बेटा जी रहा हूँ ,शामली और उसकी माँ के बिना , जब तक ये जिंदगी है।
भगवान से बोलता रहता हूँ मुझको भी जल्दी से उनसे मिला दे ।सुनकर समीर चौक गया था।क्या शामली नही है अब।पर वो तो उससे रोज मिला था।
वो बोला अशोक चले अब मुझको जाना है ।
दाऊजी को उसने भी नमस्कार किया और वो दोनो बहार निकल आये थे।
समीर बहार निकल कर अशोक से बोला कि
क्या ये सच है कि शामली नही है अब ।
शाबाजी यही तो मैं आपको बताना चाहता था।
जिस शामली की बात आप कर रहे है ,उसे गुजरे तो पैंतीस साल हो गए है। शामली उनकी इकलौती और खूबसूरत बेटी थी।मैं भी उस वक्त उसकी उम्र के लगभग ही था।वो मुझको भाई कहती थी।
उसकी हंसी उसका मस्तमौला पन सब कुछ अलग सा था। बस्ती में।अगर किसी को भी जरूरत लगे वो एक पैर पर मानो खड़ी रहती थी शाबाजी ।उस वक्त तो हमारा शिमला इतना बसा भी नही था।आने जाने का साधन भी कम ही था।पर एक बार आपकी ही तरह एक शाब यहां आये थे वो  बहुत पढ़ने वाले थे,और यहां रुक कर दिन रात यहां की पहाड़ियों में कुछ खोजते रहते व लिखते रहते थे अपनी किताब में। तभी शामली से उनकी पहचान हुई थी।
वो दोनो एक दूसरे को पसन्द करने लगे थे।
शामली भी उनके साथ पहाड़ियों में मिलने वाले  पेड़ पौधे व उनसे होने वाले फायदे उनको बताती रहती।जबकी वो कम पढ़ीलिखी थी पर उसका ज्ञान बड़ो बड़ो को मात कर देता था साब। शायद यही बात उन शाब को अच्छी लगी थी।वो उनको अपनी बस्ती भी लेकर आई थी व सबसे उनको मिलाया भी था।एक दिन वो उससे मिलने का व शादी करने का बोल कर वापस अपने देश चले गए ,फिर कभी नही लौटे।
शामली इंतजार ही करती रही ,और एक दिन सुबह से घर से जो गई कभी ना लौटने के लिए।बहुत खोजा बस्ती वालो ने उसको पर वो मिली तो लाश के रूप में। जिस झरने से उसकी प्यार की कहानी शुरू हुई उसी में वो खो गई सदा के लिए।उसके गम में काकी भी गुजर गई बस अब दाऊजी बच गए है,बस्ती वाले हम सब मिलकर अब उनका ध्यान रखते है।यह सब सुनकर 
समीर का दिमाग सुन्न से हो गया।उसको कुछ समझ नही आ रहा था कि जिस शामली से वो मिला जिसके साथ एक रात बिताई ना भूलने वाली वो बस एक आत्मा थी।
वो जल्दी से रेस्ट हाउस पहुँच गए थे,अब समीर को वहां एक एक पल भारी लग रहा था। पर उसको आज तो रुकना ही था ।क्योंकि लास्ट बस भी जा चुकी थी इस कारण।
रात को खाना कहने के बाद वो जल्दी ही रूम में आ गया था।उसके दिमाग से शामली उसकी वो उन्मुक्त हंसी ,उसका मद भर स्पर्श छुअन वो रात का मिलन कुछ नही निकल पा रहा था।
वो मन ही मन बुदबुदाया काश तुम आज होती तो मैं तुमसे शादी कर लेता छोड़ कर ना जाता।
वो सोने की कोशिश करने लगा था।पर नींद आँखों से कोसों दूर थी।
तभी उसको लगा कि उसके कमरे में कोई है  औऱ वही खुशबू मदहोश करने वाली ,वो बोला शामली !
कहां हो तुम आज मैं तुमको क्यों नही देख पा रहा हूँ। तभी उसको दूर वो परछाई नजर आ गई थी ।समीर हाँ में शामली हूँ ,तुमसें विदा लेने आई हूं ।समीर मैं सच मे आत्मा हूँ।समीर तुमको लगा होगा कि मैं केवल तुमसें ही क्यों मिली ,तो सुनो समीर तुम ही मेरे परदेशी बाबू
सुजॉय हो।तुम मुझको छोड़ कर गए वादा करके पर लौट कर ना आये,आते भी कैसे क्योंकि लौटते वक्त ही तुम्हारी कार खाई में गिर गई थी तुम सदा के लिए चले गए ।मैं बावरी बनी तुम्हारां इंतजार करती रही थी।पर तुम्हारी कोई खबर नही थी मिलती भी कैसे क्योंकि तुम थे ही नही। मुझसे तुम्हारी जुदाई सहन नही हो पा रही थी और इधर बाबा ने मेरी शादी बस्ती में ही करने का सोच लिया। मैं अपना सब कुछ तुमको मान चुकी थी तो ,किसी और कि कैसे हो जाती !इस कारण जहां से हमारे प्यार की शुरुआत हुई थी उस झरने में मैने कूद कर आत्महत्या कर ली। तुमने तो अपना जन्म ले लिया था पर में अपनी उम्र होने के कारण  भटकती रही। अपनी अधूरी इच्छाओं व तुमसें मिलन की प्यास को लेकर। और अब जब तुम अपने काम से आये तो मेरे अंदर की अधूरी मिलन की प्यास व इच्छा की पूर्ति के लिए ही मैं तुमसे मिली। मैंने तुमसें बहुत प्यार किया था इस कारण कुछ उन पलों के लिए ही वापस शरीर भी धारण किया सिर्फ तुम्हारे लिए।
मैं अब जा रही हूँ मेरे मन मीत मेरा अधूरा मिलन पूरा हुआ अब मैं तृप्त हो गई तुमसें मिलकर अब मैं जा रही हूं सदा के लिए मुक्त होकर । मैंने तुमको बहुत गलत समझा था उस वक्त इसके लिए मुझको माफ कर दो।हमारा अधूरा मिलन अब पूरा हुआ सुजॉय!
अलविदा मेरें सुजॉय ! कहकर वो परछाई गायब हो गई थी ।
समीर वो तो बूत बना गया था सब सुन कर।
दूसरे दिन वो दिल्ली के लिए निकला तो उसके मन मे बस मिलन की वो एक रात याद थी खूबसूरत पलो की जो शामली के साथ उसने बितायें थे।