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कविता: प्रेम है अनमोल (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “प्रेम है अनमोल”:
 
बुलाओगे अगर हमको तो दौड़े चले हम आयेंगे
बिना डर के किसी भी हम तुझसे मिलने को अयेगे
करो वादा मगर हमसे की तुम विश्वास ना तोड़ोगे
निभाओगे सभी रश्मे जो वादे हमसे किए थे तुम
बड़ा नाजुक सा दिल है ये इसे तुम तोड़ ना देना
बना के तुम इसे अपना कहीं मुंह मोड़ ना लेना
समर्पण की भावना का तुम मजाक ना बना देना
हमे तुमसे मोहब्बत है खेल तुम खेल ना जाना
मेरे रग रग में शामिल तुम मेरे सांसों में समाए हो
मेरे तुम रूह का हिस्सा मेरे धड़कन में बसते हो
मेरी आंखों का काजल तुम मेरी पैरों के पायल हो
मेरे माथे कि बिंदिया हो मेरे चूड़ी की खन खन हो
कहीं बन करके तुम शीशा हमें घायल ना कर जाना
देके धोखा मेरे दिल को आंख में आंसू ना दे जाना
बड़ा नाज़ुक सा है ये रिश्ता इसे संभाल कर रखना
बड़ा अनमोल है इसका कहीं कोई मोल ना कर जाना