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कविता: बेटियाँ (डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह "सहज़", हरदा, मध्यप्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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घर की जीनत, फुलों की तरह होती हैं बेटियां ,
एक नहीं दो दो कुलों को संवार देती हैं बेटियाँ ,
बड़े खुश नसीब हुआ करते हैं वो मात पिता ,
जिनके घर जन्म लिया करती हैं प्यारी बेटियाँ ,
मुस्कुराती हैं घर को स्वर्ग बनाती हैं ये बेटियाँ ,
तेरी कुदरत मेरे समझ में कुछ आती ही नहीं हैं ,
दो घर हैं उनके मजबूर फिर । भी होती हैं बेटियाँ ,
बोझ आंखों के इन तारों को न समझना तुमने ।
चिड़ियों की तरह रोज़ शोर मचाती हैं बेटियाँ ,
चहचहाती हैं कूदती फिरती हैं आंखों के सामने ।
मुश्ताक घर को सुनसान कर जाती हैं बेटियां
,

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