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रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला"
की एक कविता:
|| रक्तबीज_६ ||
रक्तबीज का एक और औलाद है
जो खौफ बेचता है हर ओर
हर कोई इसे जानते है, पहचानते है
यह ऊचे किश्म का रक्तबीज है।
ये आजकल दिमाग को खाता है
इसका साम्राज्य बहुत बडा हुआ है
ये हथियार मे पोथी को चलाता है
इश्वर के नाम पर धन्धा चलाता है।
वह डर बेचता है मुनाफे के लिये
काली ने उसका रक्त पान किया था
क्योकि वह पाप का दुकान था
आज वही इश्वर का दुकान चलाता है
मोल भाव करके स्वर्ग का मार्ग बताता है।
वह आदमी को पाठ पढाता है
मन्दिर मस्जिद का भेद बताता है
जो शब्द है ही नही किसी शास्त्र मे,
वो उसी का ज्ञान सिखाता है।
रामायण गिता कुरान बाईबल वो नही जानता
मगज ऐसा है कि उपदेश मे खुन सिखाता है
हिन्दु मे जात का पाठ पढाता है
इस्लाम मे कत्ल ए धर्म का शिख सिखाता है।
औरत मरद ऊचा निचा मन्दिर मस्जिद ,
हर ओर बसता ही नही सोता है
जहाँ भी कोई असली पाठ होता है
वो दन्गा लेकर मन्त्र आयात पढता है।
कही ताबिज कही गुलाटी कही तिलक
कही डोरा कही मोमबत्ती मे धर्म बताता है
हर चुनाव मे वह आगे आता है
और इन्सान को खुन पिलाता जाता है।
मै खुलकर बोल रहा हु
रक्तबीज मेरे ऊपर पापी का ताज चडायेगा
पन्डाल से बाहर आकर पोथी फेकेगा
वह रक्तबीज है ठेकेदार मौत का ।
हाय यह कैसी आपदा आयी है
रक्तबीज इश्वर का ज्ञान देता जाता है
नासमझ इन्सान उसे ही राम मानता है
दुर्गा का अपमान करता है।
बजार मे रक्तबीज पोथी वही बेचता है
जिससे उसका ठेका चलता है,
काली को भी हो रहा है सब भान
कैसे छुट गया वह बुन्द एक हैवान।
जला मकान रक्तबीज बनाता है कृपाण
बारुदो का गोला सजाता है वह हैवान
होगा कैसे महा समर इस अधर्मी का
जिसने पहना है कवच मायावी धर्म का।
सेना बनाकर खडा है कतार मे रक्तबीज
सामने मन्दिर मस्जिद कि ढाल लिये
खुला समर का होगा अब आगाज
पहले भेदना होगा रक्तबिज का मकान ।


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