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कविता: उम्र का वो पड़ाव जहां होता है हमसफर से लगाव (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “उम्र का वो पड़ाव जहां होता है हमसफर से लगाव”:

तुम आकर देख लो अभी भी  तुम्हारी पी हुई चाय की प्याली मेज पे पड़ी हुई है।।
 
पढ़ने की सारी किताबें अभी भी वही उसी जगह  सारी मेज पर बिखरी पड़ी हु ई है।।
 
तुम आकर देख लो अभी भी आलमारी में तुम्हारे समान रखने की जगह खाली पड़ी हुई है।।
 
अभी भी तुम्हारे रहने का कमरे का वो हिस्सा वैसे ही सजा हुआ है।।
 
तुम आकर देख लो अभी भी तुम्हारे कोट पे सजने वाली टाई रक्खी हुई है।।
 
आज भी तुम्हारे पसंद कि को सफेद शर्ट ऐसे प्रेस कर रक्खीं हुई है।।
 
तुम आकर देख लो आज भी तुम्हारे सिरहाने तारों की वो चांदनी सजी हुई है।।
 
आज भी तुम्हारे इंतजार में खाने के टेबल पर तुम्हारे पसंद का नाश्ता लगता है।।
 
तुम आके तो देख लो आज भी ये बूढ़ी आंखे तुम्हारा इंतजार करती रहती है।।
 
अभी भी ये यही सोचती है कि तुम उम्र के इस पड़ाव में हमारे साथ ही हो।।
 
तुम आकर देख लो आज भी दरवाज़े पे तुम्हारे आने की हर आहट पे चौक जाते हैं हम।।
 
अब तो चेहरे की झुर्रियां और भी बढ़ गई अब तो ये शरीर भी जवाब दे दिया।।
 
तुम आकर तो देख लो तुम्हारे बिन कैसे ये मेरा जीवन अधूरा था और अधूरा ही रह गया।।