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ग़ज़ल (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की ग़ज़ल:

जो दिल में चुपके से आ बसे थे वो मुस्कुरा के है निकल गए
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे हमें तुम बिन ना जीना
वो कुछ पलों में ही बदल गए।।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे मै हूं तुम में समाया
वो चंद मिनट में ही बिखर गए।।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे तेरे संग आंसियाना हो
वो आंसियां ही जला गए।।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे हो मेरी ज़िन्दगी तुम
वो ज़िन्दगी ही बदल गए।।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे हो मेरी वफा तुम
वो बेवफा बन निकल गए।।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे मै हूं पतवार तेरा
वो बीच भंवर में ही डूबा गए
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए
जो कहते थे मेरी जान हो तुम
वो जान ही लेके निकल गए।।
जो दिल में चुपके से आ बसे थे वो मुस्कुरा के निकल गए।
दिल के टुकड़े टुकड़े करके वो मुंह छुपा के निकल गए।।