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कविता: बेशकीमती है आप (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेशकीमती है आप ”:

लेकिन उस कीमत का फायदा ही क्या है
जब खुद से खुदी को पहचानते नहीं आप
हां माना की आपको दुनियां पहचाने लगी है अब
पर उस पहचान का क्या फायदा जब आप आप में ना रहे
कहने को आपके पास दौलत शौहरत सब भरा पड़ा है
फिर भी ज़िन्दगी में अभी भी तन्हाई का कोना खाली पड़ा है
चलो ठीक है ये दुनियां वाले आपसे बहुत प्यार करते है
पर आपका का क्या आपका दिल तो अभी भी खाली है
आप कहते हो सबके साथ आपका भावात्मक रिश्ता है
लेकिन आपके अंदर तो भाव का कोई जगह ही नहीं है
आप कहते हो आप समंदर के जैसे विशाल और शांत हो
लेकिन कभी उस समंदर को गौर से देखा को वो कितना शांत है
तुम कहते हो की तुम मोमबत्ती के जैसे हो हमेशा दूसरों के लिए उजाला देते हो
लेकिन कभी मोमबत्ती में पड़े उस धागे को देखा कि जलने के बाद उसका अस्तित्व ही खत्म

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