पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. राजमती
पोखरना सुराना की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है “अब बस भी करो":
"बहुत हो गया ,मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते करते, अब बस भी करो, मैं भी जीना चाहती हूँ ",यह कहती हुई अनु परिवार के होने वाले अत्याचार
से परेशान हो घर से निकल गई ।
आज उन्मुक्त गगन में साँस ले बहुत खुश हो रही थी। बहुत लम्बे समय से घरेलू हिंसा से ग्रस्त थी वो ।
आज परिन्दें की तरह क्षितिज को छू उसे लग रहा था,आखिर मै चुप क्यूँ रही.....पर जो हुआ अच्छा ही हुआ, मुझे अपने जीवन की नयी राह तो मिल गई।
आज उन्मुक्त गगन में साँस ले बहुत खुश हो रही थी। बहुत लम्बे समय से घरेलू हिंसा से ग्रस्त थी वो ।
आज परिन्दें की तरह क्षितिज को छू उसे लग रहा था,आखिर मै चुप क्यूँ रही.....पर जो हुआ अच्छा ही हुआ, मुझे अपने जीवन की नयी राह तो मिल गई।