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रक्तबीज_२ || सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र", जालापाडा बस्ती, बानरहाट, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:
|| रक्तबीज_ ||
 
त्रस्त त्रस्त्र भयभीत हुआ सबका का मन
हर और रक्त कि बुन्दे टपकाता है कौन ?
हर जगह खेत कारखाना शहर गली मुहल्ला
रात और दिन दो पहर खुन बरसाता है कौन?
 
 
खेत मे हरयाली है झुमती हुई फसल कि बाली है
मगर चेहरे पर उगानेवाले कि उदाशी छायी है
दिन मजुरी चार मेहनत फिर भी कंगाली छायी है
क्या रक्तबीज की हैवानियत यहाँ तक आयी है ।
 
रक्तबीज कि वह औलाद बडा शातिर दिमागी है
खुद को किसान का हितैशी बताता हुआ आता है
फसल देख कर हरी भरी वह लार टपकाता है
जिस फसल को वह छुता है वह गायब हो जाता है
 
मुस्कुराकर वह धिरे धिरे रुप बदलता रहता है
महाजन व्याजी पन्च मन्डिबाज सब बनता है
फसल किसान उगाता है पसिना दर दर बहाता है
नफा कमाता रक्तबीज , मौत कमाता कर्मवीर ।
 
मै हैरान परेशान रक्तबीज से बात करने चल पडा
आखिर वो जगह मिल गया जहाँ है वह रक्तबीज
कलम से लिखता है हाथ कम्पुटर भी चलाता है
शर्टपेन्ट पहन घुमने वाली कुर्सी पर बैठा रहता है
 
मुझे देख वह मुस्काता है चाय कि चुस्की लेता है
हर किलो मे सौ दो सौ ग्राम अपने लिये रखता है
वह फसल का दाम बोलता है जो उसे आता है
बेचने वाला किसान मुह ताकता रह जाता है
 
उसने अपने लिये सहुलियत कर रखा है हर ओर
हो वहा अगर विरोध?तैयार है उसके पास निरोध
नही चलेगा नही चलेगा शब्द निकालता है कौन?
रक्तबीज के आगे खडा हो जाता है दुबला कौन ?
 
सुखी हुई त्वचा मुरझाई हुई भाल जिर्ण शरीर
पथराई हुई आन्ख वयोवृद्ध करता है ललकार
"फसल के दाम ने आग छुआ है इस बाजार मे
फिर तुम दाम कम ही क्यो लगाते हो हर बार "
 
मुस्काया वह तोन्द हाथ से उठाया फिर चिल्लया
" देखो ताउ न करो ज्यादा भाव भाव इस ओर
पहले से ही स्टोक पडा है फिर कैसे दे बडा दाम "
रक्तबीज है वह छोड्ता नही कोई भी मौका ।
 
"रपट कराओ या पुछो अधिकारी से क्या है भाव"
रक्तबीज कि सुन ये दहाड , थर्राया ताउ इसबार
कृषि योजना से बनती मन्डी का भाव यह बताया
बीज के दाम न निकले वह योजना है किसका ?
 
बीज मजुरी जोड लिया फसल का दाम है आधा
व्याज चुकाये या रोटी खाये या मुन्नी को पढाये
छत चुता है छेचा लगाये या कपडा लता खरिदे
सोचता है वयोवृद्ध मौन रख माथे हाथ हर बार
 
कैसी यह विपदा है जाती नही है साल दर साल
खाली हाथ इसबार भी जाये कैसे अपना घर
युद्ध करु इस रक्तबीज के बडी जमात से कैसे ?
इसकी पहुँच है उपर तक सोचता है हर बार ?
 
न बेचु इस दानव को एक भी दाना कोई बीज
मगर सोचता है हर ही और बैठा है वह रक्तबीज
बुलाता है सबको लडने रक्तबीज कि सन्तान से
मौत के डर से सब हार गये सोच महा संग्राम से।
 
वयोवृद्ध तपता है अपनी ही ज्वाला से जलता है
काली का आह्वान करता है बुलाता है हर ओर
उजाले के इस अन्धेरे मै देखता हु वह रक्तबीज
मुझे देखकर मुस्कुरा रहा है वह आदम रक्तबीज ।
 
मैने रक्तबीज को देखा बहुत नजदिक से इसबार
वह फोन मिलाता है फिर मुझे हाथ दिखाता है
इसारा करता है एक तो बस एक सन्तान हु
बडा रक्तबीज तो तुम्हारे पिछे ही खडा हुआ है ।
 
धमकिया देता है मुझे रक्तबीज क्या कर लोगे ?
मै रपट लिखाऊन्गा हर ओर बताऊगा करतुत
तभी वो मेरे हाथ को पडक खिचता है तोडने को
उसके जमात भी लपक जाते है मुझे मोडने को ?
 
मेरी आवाज को वो तेज खिचता है जोर जोर से
सबको धमकी देता है बुरे हर्श पन्गु जीवन का
केस दर्ज हो गया तभी रक्तबीज के करतुतो पर
मै लगा रहा हु चक्कर, सान से बैठा है रक्तबीज ।

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