पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:
|| रक्तबीज_७ ||
सत्य पर आघात असत्य से हुआ है
हर दानव के रक्त से मिलकर रक्तबीज हुआ है
वो रुप बदलने मे माहीर हो गया है
जैसे योगमाया से वरदान पाया है ।
वो आजकल अनेको नाम से मशहुर है
वो पुल बनाता है , सडक
बनाता है
महल बनाता है और हर चिज बनाता है
जो उदघाटन से पहले ही टुट जाता है ।
वह डिग्री लेकर इन्जिनियर बना बैठा है
निरीक्षण वो केवल पैसो का करता है
वही वो कन्स्ट्रक्सन का काम करता है
जहाँ उसके बनाने कि कोई जरुरत नही होती ।
बान्ध वहाँ बनाता है जहाँ कोई नदी नही होती
जहाँ नदी होती है वहाँ नाला बनाता है
जानबुझकर बाढ मे घर आदमी बहाता है
कन्कालो को बान्ध कर वह सेतु बनाता है
एक पिसाचो कि टोली तैयार हो रही है
मेरे घर के अगल बगल मे कई दिनो से
वहाँ रक्तबीजो का दरबार लगा रहता है
कई सकल मे रक्तबीज वहाँ आता जाता है।
ठेकेदार बनिया सुनार सिमेन्टवाला राड वाला
पुलिस स्थानीय नेता अभिनेता सब वहाँ आते है
दरबार से निकले वक्त मुह मे खुन लेते आते है
नर कन्कालो कि महल सजाते हुये गाना गाते है।
देख कर ये दृश्य मेरा रुह काप जाता है
हर आदमी मुझे रक्तस्राव सा नजर आता है
उनके हाव भाव मे कोई भी सिकन्ज नही है
सायद यह जंग के आगाज का एलान है ।
सडक पर पतली अलकत्रा कि चादर बिछती है
फिर बिल पूरा अकाउन्ट मे आती है,
बास कि टहनियो को पटसन से बान्धा जाता है
उस केथा को ब्रीज का नाम दिया जाता है ।
मुरदाघरो मे भी वह पहुच जाता है
सरकारी काठ का पुलाव बनाता है
लाश को आधा जला कर फेक जाता है
दाद कि तरह वह गुप्त रोग बन जाता है।
तभी आवाज आती है सडक के उस पार से
कोई मरा हुआ मारा गया युद्ध के नाम मे
आवास योजना का मकान मिला था उसे
फिरौती नही मिली तो पूरा लाश मिला श्मशान मे
हाय हाय ये कैसा जुग सन्देश लाया है
वही मकान बनाने आया है जिसने उसे जलाया है
कल तक खेतो मे वह खुन बहाता था
वह आज घर से घुसकर खुन पिता है।
वह सन्तान है हैवान नाम रक्तबीज
धर कर रुप नया नया करता है रक्तपान
जो चिजे घटिया बनी है वो वही बनाता है
वह आदमी कि नश नश को खाता है ।
वह ठेकेदार है, हर एक
को बनाता जाता है
मेरी हो या आपकी हर एक पर नजर रखता है
जो आवाज उठाता है वो उसे बनाता है
शिराओ को चिर कर रक्त पान करता जाता है
युद्ध कि कल्पना कि मैने रातो रातो
किसान,मजदुर,नारी हर कोई है सिकार
वह पुलिस,
ठेकेदार, धर्म के दलाल, पन्चायत
सरकारी अफसर हर मे आकर बैठा है।
किसे बताऊ ये बात , कैसे करु प्रहार
सोचते सोचते हुआ मै लहुलुहान बेहाल
तान सुनाऊ हर ओर गान सुनाऊ हर ओर
वहाँ जहाँ से हो युद्ध रक्तबिज से घनघोर ।
मै कृपाण बना लुन्गा ललकार भी लुन्गा
मगर समर पर कुदने से पहले मै जानुन्गा ,
और कितने रुपो मे जिन्दा है क्रुर रक्तबीज
कहाँ कहाँ चला रहा है साम्राज्य वह क्रुर ।


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