पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
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स्वागत है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार देवेन्द्र डहेरिया देशज का एक गीत:
स्वर्ग से बढ़कर
सेज लगे व, दिव्य
लगे आलिंगन है ।
हल्की हल्की ठंड
लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है ।।
जीवन जब भी
ग्रीष्म हुआ तो, तुम बन आईं शीतल जल ।
बरस गईं तुम फिर
सावन सी, पछुआ के दिन उष्ण विकल ।।
मौसम की है चार
दिवारी, तू ही उसका आँगन है
।
हल्की हल्की ठंड
लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है ।।
बैरन पवन छुये जब
तन को, अंग अंग उठे कटारे ।
तेरे बिन तो
ठंडक अब की, लगता जीते जी मारे ।।
छोड़ो जिद अब तो आ
जाओ, मन सम्पूर्ण
समर्पण है ।
हल्की हल्की ठंड
लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है
।।
छोटे छोटे दिन
होंगे पर, आशाएं
हों बड़ी बड़ी ।
शाम ढले में घर
आऊँ तो, राह निहारो खड़ी खड़ी ।।
शीत लहर के दंश लगें ज्यों, गर्म होंठ के चुम्बन हैं
।
हल्की हल्की ठंड
लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है ।।



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