पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोना सिंह “मोनालिशा” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “नारी, खुद की पहचान
बनाओगी कब? ”:
महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिये प्रतिवर्ष 25 नवंबर को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) मनाया जाता है। आज इस दिवस पर मेरी एक कविता भारतीय नारियों के लिए।
खुद की पहचान बनाओगी कब?
आवाज उठाओगी तुम कब?
सम्मान को करो धारण अब
लाचारी का चोला फेंक
देवी रूप वरण करोगी कब?
अबला बन मत लुटो अब
अबला का साया छोड़
सबला रूप दिखलाओगी कब ?....
सीता सी तुम संगिनी हो
कोमल रूपों को छोड़
कालिका रूप में आओगी कब?
विचारों की शक्ति दिखलाओ
मदद मदद चिल्लाना छोड़
खुद अपना कदम बढ़ाओगी कब?
खुद की पहचान बनाओगी कब?