पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ• रानी गुप्ता की एक कविता जिसका
शीर्षक है “स्वार्थ
का सुख”:
स्वार्थ के सुख की
अनुभूति बेमिसाल है
स्वार्थ भरी दुनिया में
स्वार्थ के सुख का अहसास
मानव मन को बिखेरता है
लगता है जैसे,
क़दम क़दम
पर मानव ने
खुद को धोखा दिया है
मानव मन जिस सुख की
कल्पना करता है
जरूरी तो नहीं कि वो
उसे मिल जाए,
फिर भी मानव
मन
उस स्वार्थ के सुख को संजोकर
मन ही मन खुद से अठखेलियां
खेलता रहता है,
अजीब विडम्बना है ये
मानव मन की
जो सच को सच और
झूठ को झूठ मानने को
तैयार ही नहीं होता है,
स्वार्थ सुख के सागर
में
मानव मन इस कदर
गोते खाता है जैसे
खुद की बनाई दुनिया में
परायों को अपना बनाता है।।
स्वार्थ के सुख की
अनुभूति बेमिसाल है
स्वार्थ भरी दुनिया में
स्वार्थ के सुख का अहसास
मानव मन को बिखेरता है
लगता है जैसे,
खुद को धोखा दिया है
मानव मन जिस सुख की
कल्पना करता है
जरूरी तो नहीं कि वो
उसे मिल जाए,
उस स्वार्थ के सुख को संजोकर
मन ही मन खुद से अठखेलियां
खेलता रहता है,
मानव मन की
जो सच को सच और
झूठ को झूठ मानने को
तैयार ही नहीं होता है,
मानव मन इस कदर
गोते खाता है जैसे
खुद की बनाई दुनिया में
परायों को अपना बनाता है।।