पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार बिक्रम साव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “पैरों तले”:
तीन हज़ार सालों
से वो कर रहे है रैगिंग,
ना किसी
विद्यार्थी की, ना किसी व्यक्ति की,
बल्कि कई जातियों
की, कई समुदायों की।
कुचले जा रहे है
आज तक उनके अरमान,
सिर्फ और सिर्फ
जाति ही है,
उनकी उन्नति में
व्यवधान।
वो चमड़ी देखता
होगा शायद,
क्योंकि लहू तो
दोनों का है समान।
क्यों जन्म जैसी
जैविक दुर्घटना,
करती जाति का
निर्माण!
क्यों सदियों की
पीड़ा मिली उन्हें वरदान ,
क्या खोया क्या
पाया का ना रहा हिसाब,
सिर्फ पाने और
खोने पर किया गया अपमान।
क्यों नहीं है
उन्हें जाति, स्वयं चुनने का अधिकार!
क्यों वही करे हर
एक निकृष्ट काम !
खेत से कारखाने
तक, गाँव से शहर तक,
कुँए से नल तक, कच्ची गलियों से पक्की सड़कों तक
क्यों उन्हें ही
किया गया अपमान,
क्यों उनकी बेटी - पत्नियों के
इज़्ज़त लुटे गए,
क्यों उन्हीं के
बेटे - पिता पर किया गया घोर अत्याचार,
क्यों उन्हें ही
हर बार पड़ी लात,
क्यों उन्हीं के
गुप्तांगो में घुसाए गए लकड़ियाँ,
क्यों उन्हीं के
मत्थे मड़ी गई सारे कुकर्म,
क्यों उन्हें ही
कुचला गया पैरों तले ?
इन सारे क्यों का
एक ही ज़वाब है और वह है,
ये पैरों तले लोग
पैरों तले ही अच्छे लगते है !