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कविता: मजदूर की व्यथा (शंभू राय, न्यू माल जं●, मालबाजार, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शंभू राय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मजदूर की व्यथा”: 

मजदूर हूँ मैं
मजबूर हूँ....
अपनी सारी पीडा़ - मनोव्यथा
और
सांसारिक अभिलाषाएं
मन में दबाए अपने
नित उम्मीदों से भरी
परिश्रम करता हूँ ।
 
अपनी जि़म्मेदारियों को
हमेशा कंधे पर  ढो़ता हूँ
चाहे वर्षा हो
या हो तपती धूप
मुझे क्या फर्क पडे़गा ?
अपने परिवार के मुस्कुराहटों के लिए
प्रतिदिन मेहनत के पसीने बहाऊंगा 
 
मेरी भी चाह है कुछ पाने की
जग में कुछ पल ....
सुखी जीवन बिताने की
पर मैं ठहरा अभागा
वक्त का मारा हूँ ।
 
पर ये मुश्किलें भी आगे
मेरे हौसलों के सामने
कब तक टिक पाएंगी..!
 
संघर्ष करूंगा जिंदगी के इम्तिहानों से ,
तब तक
रख पाऊंगा अनमोल मुस्कान बरकरार
उनके चेहरे पर
जब तक ।
 
इसके सिवा
 
इससे ज्यादा आखिर मैं
उम्मीदें भी क्या कर सकता हूँ ?
अपनी उलझन भरी इस जिंदगी से
 
क्योंकि
 
मजदूर हूँ मैं
मजबूर हूँ ।