पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार शंभू राय की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मजदूर की व्यथा”:
मजबूर हूँ....
अपनी सारी पीडा़ - मनोव्यथा
और
सांसारिक अभिलाषाएं
मन में दबाए अपने
नित उम्मीदों से भरी
परिश्रम करता हूँ ।
हमेशा कंधे पर ढो़ता हूँ
चाहे वर्षा हो
या हो तपती धूप
मुझे क्या फर्क पडे़गा ?
प्रतिदिन मेहनत के पसीने बहाऊंगा ।
जग में कुछ पल ....
सुखी जीवन बिताने की
पर मैं ठहरा अभागा
वक्त का मारा हूँ ।
मेरे हौसलों के सामने
कब तक टिक पाएंगी..!
रख पाऊंगा अनमोल मुस्कान बरकरार
उनके चेहरे पर
जब तक ।
उम्मीदें भी क्या कर सकता हूँ ?
मजबूर हूँ ।