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कविता: राजनीति का फरेबी मुखौटा (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “राजनीति का फरेबी मुखौटा”:

यहां कोई नहीं योगी यहां बैठे है सब ढोंगी
है बढ़ती हर घड़ी लालच बने बैठे है सब लोभी
भरे मन में हजारों पाप करते धर्म की बातें
उन्हें क्या धर्म मालूम है जो करते अधर्म की बातें
है डूबे मांस मदिरा में बैठ कर दावं लगाते
कभी मंदिर कभी मस्जिद में है दंगे को भड़काते
लगा करके मुखौटा नेक बनने का पूरे दुनियां में वो घूमे
गरीबों का खून पीके वो अपनी मस्ती में जा झूमे
बनेंगे कुछ इस तरह से शरीफ कि उनसा नेक ना कोई
बने इज्जत के ठेकेदार उनसा इज्ज़तदार ना कोई
बढ़ाने वोटों को अपने छोटी हद तक वो गिर जाते
बना जनता को वो उल्लू झूठे वादों से है बहलाते
कभी शिक्षा कभी रोटी कभी है स्वास्थ्य को रखते
कभी रोजगार का झांसा दे युवां से ताली थाली बजवाते
है जनता को सभी लूटे और झूठा प्यार दिखलाते
बना के बेवकूफ उनको वो खुद जाके मौज उड़ाते
दिखावा दान का वो कर सबकी सहानभूति है पाते
उन्ही का पैसा लेके वो उन्हीं को कर्जदार है बनाते