पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीति श्रीवास्तव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “वेदना”:
सहना सदा रहेगा मुझे, क्या पुरुषों का रोष है
मैं नारी हूँ, तो क्या यही हमारा दोष है?
नाम तो लक्ष्मी, गौरी, अन्नपूर्णा
आदि दिये हैं लोगों ने,
सिर्फ मूर्ति में
पूजी जाती हूँ,
बेज्जत हुई भरी
सभाओं में
हे मानव ! क्यों भूल गया,
नारी से ही है
वजूद तेरा
उसी से चलती सृष्टि सारी
उसी से है संसार तेरा
नारी तो है बस त्याग का नाम
गमों को सह खुशियाँ देती है
इसे चाहिए बस सम्मान
नदी को माँ, गाय को माँ,
जहाँ धरती को
माता कहते हैं
सकल विश्व में पहचान है जिससे
उस देश को माता कहते हैं
बेटी बन सबको मुस्काया
पत्नी बन घर को सजाया
माँ बन कर दुलार लुटाया
उसके हिस्से में क्या आया?
सोचो तो गौर से
गर क्या उसने
जिया अपना जीवन?
जन्म से लेकर
मरने तक
तन, मन, धन सब किया समर्पण
हे मानव ! विनती है तुमसे
उसका भी करो आदर, सत्कार
बस रोक दो अब ये अत्याचार
उसे भी दो जीने का अधिकार ।
सहना सदा रहेगा मुझे, क्या पुरुषों का रोष है
मैं नारी हूँ, तो क्या यही हमारा दोष है?
आदि दिये हैं लोगों ने,
हे मानव ! क्यों भूल गया,
उसी से चलती सृष्टि सारी
उसी से है संसार तेरा
नारी तो है बस त्याग का नाम
गमों को सह खुशियाँ देती है
इसे चाहिए बस सम्मान
नदी को माँ, गाय को माँ,
सकल विश्व में पहचान है जिससे
उस देश को माता कहते हैं
बेटी बन सबको मुस्काया
पत्नी बन घर को सजाया
माँ बन कर दुलार लुटाया
उसके हिस्से में क्या आया?
जिया अपना जीवन?
तन, मन, धन सब किया समर्पण
हे मानव ! विनती है तुमसे
उसका भी करो आदर, सत्कार
बस रोक दो अब ये अत्याचार
उसे भी दो जीने का अधिकार ।