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लघुकथा: यादों की खिड़की (कल्पना गुप्ता "रतन", जम्मू एंड कश्मीर)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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आज यू ही बैठे-बैठे बरसों पहले की बात याद आ गई। हमारा एक छोटा सा प्यारा सा गांव और उसमें हमारा छोटा सा घर, जिसमें मेरी दो बहने तथा एक भाई रहते थे। मेरी दो बहनों का विवाह हो चुका था। मैं सबसे छोटी थी। बहनों के बाद हमारे लाडले भाई का विवाह एक सुंदर से प्यारी सी भाभी के साथ हो गया। भाभी कुछ कड़वे मिज़ाज की थी। उसे गांव में रहना पसंद नहीं था। कुछ ही महीनों के बाद भैया भाभी गांव छोड़ के शहर चले गए। अब घर में मैं, मेरी माता जी तथा बाबूजी रहते थे। बाबूजी बहुत ही गुस्सैल तथा अड़ियल स्वभाव के थे। बेटियों को पढ़ाने लिखाना उनको बिल्कुल भी पसंद ना था।
वैसे बता दूं शुभचिंतकों की कमी ना थी। सब अपनी अपनी अकल के अनुसार सलाह दे रहे थे। कोई कहता पढ़ाई छोड़ कर कोई छोटा-मोटा काम धंधा ढूंढ लो।
जिससे मैं अपना खर्चा निकाल सकूं। लेकिन पढ़ाई के प्रति मेरी इच्छा काम ना हो पाई।
तभी मेरी मां ने  एक नवविवाहित जोड़े को एक कमरा किराए पर रहने को दे दिया। ऐसे लग रहा था जैसे मेरी ईश्वर ने सुन ली हो। उनके घर में आने से मेरे जीवन में भाई भाभी की कमी पूरी हो गई। उनके रहते मैंअपने सगे भाई को जैसे भूल ही गई। सगे भाई ने कभी पीछे मुड़ कर देखा भी नहीं। मैं दिल लगा कर पढ़ती रही, सिर्फ इतना ही नहीं अपनी  डिस्ट्रिक्ट में  अव्वल भी रही।
कुछ समय पश्चात वह दिन भी आया, हमारे किराएदार भाई भाभी की ट्रांसफर हो गई। यहां मैं बता दूं सगा भाई तो हम सबको भूल चुका था  लेकिन यह वाला भाई मुझे कभी नहीं भूला। हमारे घर से जाने के बाद उनके घर में दो बेटों ने जन्म लिया जिनका नाम रखा गया रोहन और सोहन। बुआ होने के नाते मेरी नेग घर में ही आ गई।
समय का पहिया चलता रहा। सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो चूके थे। आहिस्ता आहिस्ता पत्र आदि आना भी बंद हो गए। हम दोबारा नहीं मिल पाए। आधुनिक जमाना आ गया, फेसबुक का चलन शुरू हो गया। यादों के झरोखे अक्सर देते हैं दस्तक और मैं ढूंढती हूं मेरे माता-पिता के समान भाई को फेसबुक पर।
 
असफलता ही हाथ आई, लेकिन बरसों बाद एक दिन मैं और मेरे पति के संग ट्रेन में जा रहे थे। तभी ट्रेन को झटका लगा और एक सुंदर सा प्यारा सा बच्चा जो हमारी सीट के पास से गुज़र रहा था, गिर गया। मैं उसे उठाने को जा ही रही  थी कि मेरी नजर सामने बैठे एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ी। बालों का रंग श्वेत भूरा, उम्र करीब करीब सतर बहतर साल। वो अपने पोते के साथ खेल रहा था। कुछ जाना पहचाना सा चेहरा, बात करने का लहजा, तथा मुस्कुराने का ढंग सब जाना पहचाना। यादों की खिड़कियों से परतें उठने लगी, दिल बार बार कहने लगा । सामने बैठा व्यक्ति कोई और नहीं, तुम्हारी
जिंदगी बदलने वाला, तुम्हारा धर्म का भाई ही है। फिर क्या था मैंने डरते डरते आवाज लगाई--भैया। छलक उठे आंखों से आंसू, आंखों ने दिल को जगाया, दिल ने याद करवाया। वाह यादों की खिड़की ने आज फिर से मुझे मेरे बचपन वाले भाई से मिलवाया।