पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
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है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजाराम स्वर्णकार की एक कविता जिसका
शीर्षक है “रुप किशोरी”:
रूप किशोरी चंद्र चकोरी ये बतला तू कौन है
बार बार पूछा पर रहती मौन है ।
उज्ज्वल धवल चांदनी में खिलती है तेरी तरुणाई
भाल समुन्नत, गाल गुलाबी, नैन नशीले, बयन सुरीले
केसर क्यारी, अमृत झारी, ओठ रसीले, अंग गठीले
तूं बसन्त की महा नायिका तूं है फूलों की रानी
तूं मेघों में सदा मचल करती वर्षा की अगवानी
तूं तो सदा पूर्ण लगती है सदा सुरंगी मस्ती में
चौथाई है, आधी है या पौण है
बार - बार पूछा, पर रहती मौन है ।
अंग - अंग में मादकता है चिर यौवन की माया है
रंभा और मेनका तेरे आगे कहीं नहीं टिकती
और विश्व सुंदरियां तो मानो कि टके सैर बिकती
सृष्टि की सुंदरता सारी ईश्वर ने तुझमें भर दी
जिस सर्जक ने तुझे रचा उस कलाकार ने हद कर दी ।
भू, पाताल और अंतरिक्ष में नहीं कोई तेरा सानी
मुझे लगे कि ईश्वर को भी होती होगी हैरानी
लौकिक नहीं अलौकिक सारे तेरे आगे गौण है
बार - बार पूछा पर रहती मौन है ।
कहीं सुकोमल स्पर्श है कहीं मृगी सी चितवन है
काल असीमित, पृथ्वी विपुल किसका कोई रखे लेखा
एक बात तो तय है तुम सा कोई अन्य नहीं देखा
शायद तूं है रूह किसी की जो सचमुच भरमाई थी
कई हजारों वर्ष पूर्व जो इस पृथ्वी पर आई थी
इस अनन्तकाल सागर में मूल्यवान तूं गौहर है
उस इकलौती परम् सुंदरी की तूं मात्र धरोहर है
जहां सभी में विषम विकृतियां वहां तूं ही समकोण है
बार - बार पूछा पर रहती मौन है ।
रूप किशोरी चन्द्र चकोरी ये बतला तू कौन है ।।